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________________ [४] ममता : लालच अब इन्हें अक्ल वालें कहें या अक्ल के बोरे कहें ? बेचें तो कितने पैसे आएँगे? चार आने भी नहीं आएँगे । है न ? २०७ 4 और ममता तो इस हद तक कि ' हिन्दुस्तान देश हमारा है' कहेगा। फिर गुजरात में क्या कहेगा ? 'गुजरात हमारा।' वहीं पर यदि कोई गुजरात में है और वे सब बातें करते हैं कि 'सौराष्ट्र तो आपका, लेकिन हमारा चरोतर बहुत अच्छा ।' ऐसे पूरे चरोतर के मालिक बन बैठते हैं ! फिर चरोतर में आणंद वाले कहते हैं कि 'हम ऐसे ।' जबकि भादरण वाले कहते हैं, ‘हमारे भादरण वाले ऐसे ।' तब वहाँ पर पूरे गाँव का मालिक बन बैठता है। फिर गाँव में दो मोहल्ले वाले लड़ रहे हों तब कहता है, 'आपका मोहल्ला ऐसा और हमारा मोहल्ला ऐसा ।' फिर एक ही मोहल्लेवालों में झगड़ा हो तब कहते हैं, 'तुम्हारा खानदान ऐसा और हमारा खानदान ऐसा।' खानदानवालों में झगड़ा हो तब कहते हैं कि, 'आपका घर ऐसा और हमारा घर ऐसा ।' कहाँ तक ? तो आखिर में दो भाईयों के बीच में अनबन हो, तब कहते हैं, 'तुझसे तो मैं कुछ अलग हूँ।' तो अंत तक यही का यही । फिर उसे संभालने के लिए अंतिम सीमा तक चला जाता है। पूरे गुजरात, पूरे हिन्दुस्तान को संभालने जाता है पूरे हिन्दुस्तान में अपना सामान फैलाया है, उसका अर्थ ही क्या है फिर ? यह तो, खुद का तो कल्याण किया नहीं और ऐसे सब जगह अपने बिछौने बिछाता रहता है । I अब यह दृष्टिभेद कौन करवाता है ? बुद्धि ! और वह इतनी हद तक दृष्टिभेद करवाती है कि इन सब से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। ‘यह हमारा, यह हमारा घर, हमारा है यह सबकुछ | दूसरे किसी से हमारा लेना-देना नहीं है।' इतना अधिक दृष्टिभेद करवाती है । हम कहें, 'आपका घर, तो अब तो आपके घर में जुदाई नहीं है न ?' तब वह कहता है, ‘नहीं, हमारे घर में जुदाई नहीं है।' लेकिन जब दो लोग आपस में लड़ते हैं न, तब क्या करते हैं ? घर में वापस दो लोग आपस में लड़ते हैं या नहीं लड़ते कभी? प्रश्नकर्ता : हाँ, लड़ते ही है न!
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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