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________________ [४] ममता : लालच २०९ तो यहीं रह जाएगी और हमारे चले जाने के बाद भी वह यहीं पर रहती है। फिर तो पीछे वाले लोग अँगूठी निकाल लेते हैं या नहीं निकाल लेते? और अंगठी नहीं निकले न, तो उँगली काटकर भी निकाल लेते हैं। इसलिए वहाँ पर ममता नहीं करनी है। यानी हमारे जाने के बाद जिसका अस्तित्व नहीं रहे, उतनी ममता अपनी। उसके आगे की ममता खत्म हो जानी चाहिए। यानी मेरा क्या कहना है कि कौन सी ममता खत्म हो जानी चाहिए? कि खुद का इकलौता बेटा हो उस पर से भी ममता चली जाए, और इस तरह सभी जगह पर से ममता चली जानी चाहिए। यह गप्प नहीं है। लोगों की परीक्षा में तो गप्प गुणा गप्प करके जवाब लाए तब भी पास हो जाते हैं। लेकिन 'ज्ञानी' की परीक्षा में पास नहीं होंगे। वहाँ गप्प नहीं चलेगी। वहाँ तो एक्जेक्टनेस चाहिए। फैलाई हुई ममता कोई इन्श्योरेन्स वाला देख रहा हो कि यह स्टीमर डूब रहा है, वह खुद ऐसे देखता ज़रूर है, लेकिन उस पर असर क्या होता है ? और यदि स्टीमर डूब जाए तो इन्श्योरेन्स वाले को पैसे तो देने पड़ेंगे न? प्रश्नकर्ता : हाँ, पैसे तो देने पड़ेंगे। दादाश्री : लेकिन उस पर कोई असर होता है क्या? प्रश्नकर्ता : उस पर असर नहीं होता। दादाश्री : ऐसा क्यों? यदि कंपनी की चीजें खो जाएँ तो किसे दुःख होता है? सभी 'हमारा, हमारा' कहते हैं, लेकिन है कोई ममता किसी प्रकार की? यों दो तरह की ममता होनी चाहिए। शरीर पर पूरी ममता होनी चाहिए और बाहर की ममता, जो फैलाई हुई ममता है, वह ऐसी होनी चाहिए। 'यह घर हमारा, यह घड़ी हमारी, यह अँगूठी हमारी' कहते हैं,
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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