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________________ १८६ आप्तवाणी-९ प्रश्नकर्ता : लेकिन एक्सपर्ट तो व्यवहारिकता में आता है। दादाश्री : एक्सपर्ट तो किसी खास व्यवहार में ही पड़े हुए होते हैं। उसी क्षेत्र में एक्सपर्ट बने होते हैं, किसी और विषय में नहीं होते। अन्य किसी चीज़ में जीरो होते हैं। जबकि कॉमनसेन्स वाला किसी भी क्षेत्र में जीरो नहीं होता। प्रश्नकर्ता : दादा, ये 'कॉमनसेन्स' और 'ज्ञान,' इन दोनों का कोई लेना-देना है क्या? दादाश्री : ज्ञान को इतना ही लेना-देना है कि नि:स्वार्थता होती है 'ज्ञान' में! जिन्हें 'ज्ञान' की प्राप्ति होने वाली हो, वे निःस्वार्थता में होते हैं। उनमें कॉमनसेन्स विकसित होता जाता है और साथ-साथ ज्ञान भी विकसित होता जाता है। वर्ना कॉमनसेन्स का और ज्ञान का कुछ लेना-देना नहीं है। 'ज्ञान' तो आप सभी को है ही न! कहाँ नहीं है? लेकिन निःस्वार्थता के कारण कॉमनसेन्स और ज्ञान दोनों विकसित होते जाते हैं। जबकि स्वार्थी में कॉमनसेन्स 'वन साइडेड' हो जाता है, और ज्ञान का बिल्कुल भी विकास नहीं होता। प्रश्नकर्ता : लेकिन जिसमें स्वार्थ हो उसकी व्यवहारिकता का विकास होता है न? दादाश्री : व्यवहार सुंदर होता जाता है, लेकिन 'वन साइडेड,' किसी खास साइड में होता है। वन साइडेड को कॉमनसेन्स नहीं माना जाता। कॉमनसेन्स अर्थात् 'एवरीव्हेर एप्लिकेबल'! इसलिए मैंने उसके लिए दूसरा अग्रेज़ी शब्द रखा है 'एवरीव्हेर एप्लिकेबल,' ताकि लोग उनकी भाषा में न समझ लें। प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, क्या ऐसा होता है कि उनमें अंदर रागद्वेष हो भी सकते हैं या नहीं भी? दादाश्री : निःस्वार्थता की ओर जाए न, तो राग-द्वेष कम होते जाते हैं। स्वार्थी को ही सारे राग-द्वेष हैं।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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