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________________ [३] कॉमनसेन्स : वेल्डिंग १८७ प्रश्नकर्ता : और कॉमनसेन्स वाले को राग-द्वेष? दादाश्री : उसके राग-द्वेष कम होते जाते हैं दिनोंदिन, ज्ञान बढ़ता जाता है, कॉमनसेन्स का विकास होता जाता है, सभी कुछ बढ़ता जाता है। प्रश्नकर्ता : टकराव होने से कॉमनसेन्स का विकास होता है क्या? अगर उसमें से सार निकालना आए तो? दादाश्री : नि:स्वार्थता के कारण उसके द्वारा तुरंत ही सार निकल ही जाता है। स्वार्थी को तो पता ही नहीं चलता। ऐसी-ऐसी घटनाएँ होती हैं लेकिन घटनाएँ 'फ्री ऑफ कॉस्ट' निकल जाती हैं। घटनाएँ तो बहुत सारी होती हैं, लेकिन भूल जाता है पूरा जगत्। जबकि उसमें (निःस्वार्थता में) तो पूरा सार निकल ही जाता है। प्रश्नकर्ता : सार निकल ही जाता है ? उसे कुछ करना नहीं पड़ता? दादाश्री : नहीं, कुछ भी नहीं। अपने आप ही सार निकल जाता है और उधर जब वह सार निकाल लेता है, तब ज्ञान प्रकट होता है। प्रश्नकर्ता : जैसे ज्ञान में दिखाई देता है कि यह 'रियल,' यह 'रिलेटिव,' कर्ता कौन, यह कौन, ऐसा सब दिखाई देता है अंदर तो कॉमनसेन्स वाले में दूसरी कोई लाइट होगी न? दादाश्री : कॉमनसेन्स वाले तो हर उस ताले को खोल देता है जो नहीं खुल पा रहा हो। प्रश्नकर्ता : कौन से सॉल्यूशन से, कौन सी चाबियों से खुलता है, ऐसा? दादाश्री : नहीं, वह स्वाभाविक रूप से होता है उसमें, वह अनुभवजन्य होता है। हर एक घटना में से अनुभवजन्य ज्ञान प्राप्त हुआ होता है, वे ही चाबियाँ होती हैं। घटनाओं में से जो अनुभवजन्य चीज़ होती है न, उन चाबियों के आधार पर सारे काम करता है वह जबकि जो एक्सपर्ट होता है, वह वहाँ पर धोखा खा जाता है। वह भी धोखा खा जाता है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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