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________________ [३] कॉमनसेन्स : वेल्डिंग १८५ दादाश्री : हाँ, किसी लिमिटेड फील्ड में ही। बाकी सभी जगह पर कमी रह जाती है। प्रश्नकर्ता : कॉमनसेन्स से व्यवहार को देखे, तब उसमें उसके सभी कैल्क्यूलेशन रहते हैं और अगर ज्ञान से देखे तो स्वयं किसी को भी कर्ता नहीं देखता, 'व्यवस्थित' के ताबे में देखता है। तो इन दोनों में, व्यवहारिक 'सॉल्यूशन' लाने में क्या फर्क पड़ता है? दादाश्री : अपना ज्ञान का सॉल्यूशन अलग तरह का है। प्रश्नकर्ता : दोनों में उच्च प्रकार का सॉल्यूशन कौन सा? दादाश्री : कॉमनसेन्स वाला। बाकी, ज्ञान का सॉल्यूशन तो इतना (इस तरह का) होता ही नहीं है न! प्रश्नकर्ता : ज्ञान का सॉल्यूशन आए तो खुद की जलन बंद हो जाती है। दादाश्री : जलन बंद हो जाती है, लेकिन बाह्य व्यवहार का काम नहीं हो पाता न! अपने सभी महात्माओं को व्यवहार में ज्ञान काम में नहीं आता। उनमें कॉमनसेन्स है ही नहीं न! पत्नी से विवाह किया, तो उसके साथ निकाल किस तरह करना है, वह नहीं आता। इन साधुआचार्यों की शादी करवा दें तो वे तीसरे दिन भाग जाएँगे! क्यों भाग जाएँगे? उस लाइन के बारे में कुछ जानते ही नहीं न कि अब किस तरह इसका हल लाए! प्रश्नकर्ता : कॉमनसेन्स वाले को इस ज्ञान का जैसा लाभ होना चाहिए वैसा नहीं होता न? क्योंकि उसकी दृष्टि व्यवहार की तरफ ही होती है। दादाश्री : वह कॉमनसेन्स नहीं माना जाता। वे तो सब स्वार्थमय परिणाम हैं सारे, वन साइडेड होते हैं। कॉमनसेन्स तो 'एवरीव्हेर एप्लिकेबल,' 360 डिग्री वाला होता है, लेकिन ‘एक्सपर्ट' किसी भी क्षेत्र में नहीं होता।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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