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प्रेक्षाध्यान: सिद्धान्त और प्रयोग
एव प्राणवायु (ऑक्सीजन) की आपूर्ति की निरंतर आवश्यकता रहती है। इसके अतिरिक्त कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, यूरिया आदि अनावश्यक तत्त्वों को कोशिकाओं से हटाकर फेफडों, गुर्दों या यकृत में पहुंचाने की आवश्यकता रहती है जहां से इनको विसर्जन या आवश्यक शोधन किया जा सके।
८.६
रक्त परिसंचरण तंत्र अपनी फैली हुई शाखा प्रशाखाओं की जटिल संरचना एवं अंतः-संबंध-युक्त नलिकाओं के माध्यम से रक्त को सारे शरीर में पहुंचा कर शरीर को यह सेवा प्रदान करता है ।
इस तंत्र के प्रमुख अवयव हैं - हृदय, फेफड़े, महाधमनी, धमनियां, महाशिरा, शिराएं और कोशिकाएं ।
रक्त को सतत प्रवहमान रखने के लिए जिस प्रेरक बल की आवश्यकता है, वह है हृदय नामक शक्तिशाली पम्प की नियमित होने वाली धड़कन ।
परिसंचरण का सामान्य क्रम इस प्रकार है
हृदय महाधमनी धमनियां → लघु धमनियां → लघु शिराएं →>> शिराएं → महाशिरा → हृदय ।
केशिकाएं
पाचन-तन्त्र
जीवन की अनिवार्य क्रियाओं के संपादन हेतु निरन्तर ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है । पाचन-क्रिया जिस अवयव के द्वारा होती है उसे भोजन-प्रणाली अथवा अन्नमार्ग कहते हैं। भोजन-प्रणाली (Alimentary Canal) तथा कुछ अन्यान्य ग्रन्थियां, जो अपना रस इस प्रणाली को प्रेषित करती हैं मिलकर 'पाचन-संस्थान' बनाती हैं। भोजन-प्रणाली का प्रारम्भ मुख से होता है और अन्त मलद्वार में । यह सारा मार्ग लगभग नौ मीटर होता है।
इस तंत्र के अवयव हैं- मुख और लार ग्रंथि, अन्ननली, आमाशय, पक्वाशय, बड़ी आंत आदि ।
पाचन-तंत्र के सहायक अवयव - यकृत क्लोम - ग्रन्थि (अग्न्याशय या चुस्ता) (Pancreas) ।
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