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प्रेक्षाध्यान: सिद्धान्त और प्रयोग
संचालित होती हैं और कुछ प्रवृत्तियां मेरुदण्ड और मस्तिष्क के द्वारा संचालित होती हैं। जैसे हाथ उठाना है, आदमी की इच्छा होगी, तो हाथ उठेगा, आन्तरिक अवयवों के कार्य, ग्रन्थियों का स्राव आदि सारे कार्य स्वायत्त तंत्रिका तंत्र से निष्पादित होते हैं। मेरुदण्ड के दोनों ओर सिम्पेथेटिक
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भैरवदृढ़तानिका छंदित कीकस चाप प्रथम उदर कीकस
मैरव तन्त्रिकाओं के
पश्चतन्तु
श्रोणी की पृष्ठनितम्बा शिरा के मध्य से काट त्रिक
अवसान सूत्र गुदास्थ
मस्तिष्क मध्य मस्तिष्क प्रमस्तिष्क शिरोवृन्त मध्य लघुमस्तिष्क वृन्त
चतुर्थ प्रवेश्म
पश्च मस्तिष्क
मज्जक
उरः कीकस मेरु रज्जु
मैरव तन्त्रिका
मैरव प्रगण्ड
केन्द्रीय तन्त्रिका संस्थान के मुख्य अंग-मस्तिष्क और सुषम्ना (मेरु रज्जु) (Spinal Cord)
और पेरासिम्पेथेटिक - अनुकम्पी और परानुकंपी-ये दो प्रकार की तंत्रिकाओं के गुच्छे होते हैं। वहां से स्वायत्त तंत्रिका तंत्र संचालित होता है। उसमें मस्तिष्क और मेरुदण्ड का विशेष उपयोग नहीं होता, किन्तु सम्बन्ध अवश्य जुड़ा रहता है।
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