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प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग श्रमिकों को उच्च रक्तचाप, रक्त में कोलेस्टेरोल की अति मात्रा तथा धूम्रपान आदि व्यसन के कारण हृदय रोग का खतरा हो गया था। उन्हें आठ सप्ताह तक प्रति सप्ताह एक घंटे तक शिथिलीकरण का अभ्यास करवाया गया। उनके रक्तचाप में उल्लेखनीय कमी पायी गई। इस कारखाने के ऐसे अन्य श्रमिकों का दल, जिसे उपर्युक्त अभ्यास से वंचित रखा गया था (जिसे 'कण्ट्रोल ग्रुप' कहा जाता है), सदस्यों की तुलना में प्रयोग के अन्तर्गत अभ्यास करने वाले दल के सदस्यों में तीन वर्ष पश्चात् भी रक्तचाप नीचा रहा तथा उनमें हृदय-रोग की घटनाएं भी कम हईं।
सूक्ष्म शरीर की घटनाओं का ज्ञान
अध्यात्म की साधना करने वाले व्यक्ति को अध्यात्म के नियमों से परिचित होना जरूरी है। कायोत्सर्ग होता है, श्वास-दर्शन होता है। कायोत्सर्ग होता है, शरीर-प्रेक्षा अपने आप हो जाती है। शरीर में होने वाले कंपन अपने आप प्रकट होने लगते हैं। कायोत्सर्ग होता है, विचार-दर्शन होता है। शरीर के हर अवयव की स्थिरता जब सधती है, प्रत्येक कोशिका की स्थिरता का अभ्यास होता है, तो फिर किस कोशिका में कहां, क्या हो रहा है, इस घटना का पता लगने लग जाता है। नाड़ी-संस्थान में, ग्रंथि-संस्थान में जो कुछ हो रहा है, विद्युत-प्रवाह की जो गति हो रही है, रसायन किस प्रकार अपने दिविध परिणमन कर रहे हैं और किस प्रकार के रसायन बन रहे हैं, उन सब घटनाओं का कायोत्सर्ग में पता लग जाता है। कायोत्सर्ग जैसे-जैसे विकसित होता है, जैसे-जैसे शरीर की स्थिरता सधती जाती है, वैसे-वैसे जागरूकता बढ़ती जाती है। चेतना निर्मल हो जाती है और इस स्थूल शरीर का अतिक्रमण कर सूक्ष्म शरीर की घटनाओं का भी पता लगने लग जाता है।
ज्ञाता-द्रष्टा भाव का जागरण
जब कायोत्सर्ग घटित होगा तब शरीर की सारी चंचलता समाप्त हो जाएगी, इतना ही नहीं अपितु साधक 'सुसमाहितात्मा' बन जाएगा। आत्मा का वह स्वरूप प्रकट होगा जो पहले कभी नहीं हुआ था। इस स्वरूप को आज तक या तो इन्कार करते रहे थे, या केवल मानते रहे थे। किंतु अब जानने लग जाएंगे। जानने की बात तब आती है जब कायोत्सर्ग की स्थिति प्राप्त होती है। कायोत्सर्ग आत्मा तक पहुंचने का द्वार है। इनकी
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