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कायोत्सर्ग निष्पत्ति है अध्यात्म की उपलब्धि, अपने अस्तित्व की उपलब्धि, अपन स्वरूप की उपलब्धि, ज्ञाता-द्रष्टा-भाव की उपलब्धि। आभामंडल का दर्शन
___ कायोत्सर्ग की प्रगाढ़ अवस्था में आभामंडल का दर्शन भी होने लगता है। जब कायोत्सर्ग सघन होता है तब परमाणुओं का भीतर आना बन्द हो जाता है। उस स्थिति में स्थूल शरीर को पार करने के पश्चात् अतिसूक्ष्म शरीर के स्पन्दन दिखाई देने लग जाते हैं। उसका साक्षात्कार होते ही हमारी सारी दृष्टि बदल जाती है। विवेक-चेतना का जागरण
___ जब कायोत्सर्ग सधता है तो विवेक-चेतना जाग जाती है, चेतना और शरीर की भिन्नता स्पष्ट हो जाती है, साक्षात्कार हो जाता है यह रहा शरीर और यह रहा चैतन्य; यह रहा शरीर और यह रही आत्मा। बिलौना किया। एक बिन्दु आता है-यह रही छाछ और वह रहा मक्खन। तिल घानी में पैला जाता है, एक बिन्दु आता है-यह रही खली और यह रहा तेल। सोना तपाया जाता है। एक बिंदु आता है-यह रही मिट्टी और यह रहा शुद्ध सोना। विवेक हो जाता है, पृथक्करण हो जाता है।
यह शरीर है और यह आत्मा। यह अचेतन है और यह चेतन। यह अशाश्वत है और यह शाश्वत । आत्मा और पुद्गल का स्पष्ट भेद उसे साक्षात् हो जाता है। यह विवेक-चेतना बहुत बड़ी उपलब्धि है। वास्तव में शरीर का मूल्यांकन वही व्यक्ति कर सकता है, जिसने कायोत्सर्ग का अभ्यास किया है। वास्तव में शरीर का सार वही निकाल सकता है, जिसने कायोत्सर्ग को साधा है।
कायोत्सर्ग की अनुभूति के पीछे शरीर-विज्ञान की दृष्टि से कौन-सी क्रिया कार्य करती है ? जैसे हम पहले बता चुके हैं, जिस समय मांसपेशियों को शिथिल किया जा रहा था, उस समय उनसे सम्बद्ध क्रियावाही नाड़ियों में धीरे-धीरे विद्युत् का प्रवाह मन्द होता जा रहा था तथा इस प्रकार उन्हें विश्राम का अवसर दिया जा रहा था। अन्ततोगत्वा सम्पूर्ण क्रियावाही प्रणाली को निष्क्रिय बनाकर उसे विश्राम की अवस्था में स्थापित किया गया और फिर उसी का अनुकरण उसकी ही पूरक प्रणाली-संवेदी (ज्ञानवाही) प्रणाली द्वारा किया गया है जो मस्तिष्क (या केन्द्रीय नाड़ी-संस्थान) तक संवेदनों को पहुंचाने का कार्य करती है। इस
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