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कायोत्सर्ग जाए. कोई भी अंग न हिले। शरीर की सारी प्रवृत्ति का विसर्जन करना ही शिथिलीकरण है।
कायोत्सर्ग में पहले हम इच्छाचालित नाड़ी-संस्थान को स्थिर करते हैं। जैसे-जैसे अभ्यास बढ़ता है, स्थिरता फलित होती जाती है। जब इच्छाचालित नाड़ी-संस्थान पर नियन्त्रण स्थापित हो जाता है, तब स्वतःचालित नाड़ी-संस्थान भी अपने आप स्थिर होने लग जाता है, हृदय की धड़कन भी कम होने लग जाती है, श्वास मन्द हो जाता है, उसकी संख्या घट जाती है, प्राणवायु या ऑक्सीजन की खपत कम हो जाती है, सारी अपेक्षाएं कम हो जाती हैं और अकल्पित शांति का वातावरण भीतर में निर्मित हो जाता है। शरीर पर प्रभाव
शरीर पर कायोत्सर्ग के प्रभाव की चर्चा करें, तो कहा जा सकता है कि कायोत्सर्ग के द्वारा लगभग सभी नाड़ी-तंत्रीय कोशिकाएं प्राण-शक्ति से अनुप्राणित हो जाती हैं। एक प्रकार से उन्हें ऐसा अवकाश का समय प्राप्त होता है, जिसके दौरान वे निरन्तर उन पर पड़ने वाले बोझ से मुक्त रहती हैं-रात-दिन मस्तिष्क तक संवेदन को पहुंचाने तथा प्रवृत्ति-बहुल गतिविधियों को चलाने के थका देने वाले कार्य से विश्रान्ति का अनुभव कर सकती हैं। इसलिए यह आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि दीर्घकालीन अशांत निद्रा की अपेक्षा स्वल्पकालीन कायोत्सर्ग व्यक्ति को अधिक स्फूर्ति और शक्ति प्रदान करता है।
ऊपर जो बताया गया, उससे तो स्पष्ट हो चुका होगा कि कायोत्सर्ग का प्रयोग करते समय नींद लेना प्रयोग के लक्ष्य के विपरीत होगा। पर नींद में जाने से पूर्व कायोत्सर्ग का प्रयोग करने का परिणाम होगा-स्वस्थ शांतिपूर्ण नींद। शारीरिक लाभ
जिन व्यक्तियों को उच्च रक्तचाप आदि के कारण हृदय-रोग होने की सभावना रहती है, वे कायोत्सर्ग के नियमित अभ्यास से अपनी प्रतिकार-शक्ति का बढ़ाकर इस खतरे से बच सकते हैं। एक इलेक्ट्रोनिक सामग्री-निर्माण करने वाले कारखाने के १०० श्रमिकों पर एक प्रयोग किया गया। इन १. लन्दन में १६८३ में ब्रिटिश हालिस्टिक मेडिकल एसोशिएसन के उद्घाटन समारोह
के अवसर पर बताए गए सत्य वृत्तान्त के आधार पर।
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