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कायोत्सर्ग
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मुक्त होना नहीं जानते। जब हम सोचना प्रारम्भ करते हैं, तो उसको तोडना कठिन हो जाता है। कठिन इसलिए है कि हम अचिंतन की बात नहीं जानते ।
मानसिक तनाव का मुख्य कारण है - अधिक सोचना । सोचने की भी एक बीमारी है। कुछ लोग इस बीमारी से इतने ग्रस्त हैं कि प्रयोजन हो या न हो, वे निरन्तर कुछ-न-कुछ सोचते ही रहते हैं। इसी में अपने जीवन की सार्थकता समझते हैं।
मन को विश्राम देना तभी संभव है, जब हम वर्तमान में रहना सीख जाएं। वर्तमान में जीने का अर्थ है - मन को विश्राम देना, भार से मुक्त होना, मानसिक तनाव से छुटकारा पाना ।
तीसरा है - भावनात्मक तनाव। यह बहुत ही जटिल है। यह एक बहुत बड़ी समस्या है। जो वस्तु प्राप्त नहीं है, उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करना, उसी प्रयत्न में लगे रहना आर्त्त ध्यान है । प्रिय वस्तु की प्राप्ति तथा मनोज्ञ और मनोनुकूल पदार्थ की उपलब्धि के लिए प्रयत्नशील रहना और अमनोज्ञ, अप्रिय और मन के विपरीत वस्तु से छुटकारा पाने का प्रयत्न करना - भावनात्मक तनाव पैदा करता है ।
रौद्र ध्यान भी भावनात्मक तनाव का कारण बनता है । मन में संकल्प-विकल्प चलता रहता है । रौद्र ध्यान में कभी हिंसा का भाव पैदा होता है, कभी प्रतिशोध का भाव पैदा होता है। मूल घटना कुछ क्षणों में होती है, किंतु प्रतिशोध की भावना वर्षों तक चलती रहती है। मन में निरन्तर बदला लेने की भावना बनी रहती है। इसी में सारी शक्ति का व्यय होता है । यही तनाव का कारण है।
आज के युग में शारीरिक तनाव एक समस्या है। मानसिक तनाव उससे उग्र समस्या है और भावनात्मक तनाव सबसे विकट समस्या है, भयंकर समस्या है। मानसिक तनाव से भी इसके परिणाम बहुत भयंकर होते हैं। इस समस्या से निबटने के लिए प्रेक्षाध्यान का सहारा लिया जाता है. कायोत्सर्ग का द्वार खोला जाता है। प्रेक्षाध्यान के अभ्यास से आर्त्त- रौद्र ध्यान छूट जाता है। उससे उत्पन्न होने वाला तनाव घट जाता है । प्रेक्षाध्यान और कायोत्सर्ग- ये अपने आप में जीने के साधन हैं, अपने भाव (स्वभाव) में रहने के उपाय हैं।
कायोत्सर्ग : कायिक ध्यान
हम मनुष्य हैं। हमारे पास चार गतिशील तत्त्व हैं- शरीर, श्वास,
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