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प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग
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तथा नया उल्लास प्राप्त होगा । चैतन्य- केन्द्रों की प्रेक्षा महत्त्वपूर्ण ही नहीं, वास्तव में अध्यात्म-विकास का सर्वोत्तम साधन है।
केन्द्र चेतना के सभी, है तन में अविकार । वैज्ञानिक की ग्रन्थियां, चक्रयोग के द्वार ।। ये प्रसुप्त जब तक रहें, प्रज्ञा होती सुप्त । नश्वर तन में समझ लो, ये हैं निधियां गुप्त ।। उनकी जागृति हेतु है, यह सारा अभियान । ऊर्ध्वारोहण के लिए, साधक करे प्रयाण ।। ज्ञानकेन्द्र मस्तिष्क में, सहस्रार अभिधान । ज्ञानमयी जो चेतना, उसकी है पहचान ।। शांति- केन्द्र सुख-उत्स है, उसका तालु स्थान । शांति - गवेषक नर करे, समुचित अनुसंधान ।। ज्योति-केन्द्र पर ध्यान से आत्मिक अभ्युत्थान । ज्योतित कण-कण को करे, यह सुन्दर अनुपान । । दर्शन-केन्द्र प्रसिद्ध है, हितकर आज्ञाचक्र । भृकुटि - मध्य प्रेक्षा सफल, जो मन रहे अवक्र । । चाक्षुष केन्द्र कनीनिका, शांति - सेतु अविवाद | सधे सहज एकाग्रता, तन-मन में आह्लाद । छठा केन्द्र है कान में, अप्रमाद अभिधान । जागरूकता वृद्धि में, है इसका अवदान ।। प्राण- केन्द्र नासाग्र पर लगता जिसका ध्यान । उसके प्राणों में सदा, भर जाती मुस्कान । । ब्रह्म- केन्द्र जिह्वाग्र पर जमे ध्यान अविराम । सहज शान्त हो वासना, आत्मरमण परिणाम ।। केन्द्र विशुद्धि विशुद्ध है, कण्ठकूप अवधार । शुभ जालंधर बंध से, सहज सुधार-संचार ।। केन्द्र परम आनन्द का देता सुख एकान्त । हृदय-चक्र हृच्चेतना से संबद्ध नितान्त । । तमहर तैजस- केन्द्र यह है मणिपूर ललाम । नाभिकमल आस्थान से खुलते नव आयाम ।। स्वास्थ्य केन्द्र जो चक्र है, मूलाधार महान् । इसको जागृत कर बढ़े करें सत्य संगान ।।
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