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लेश्या-ध्यान
१४१ विचारों के विकल्पों के और मोह के स्पंदन इन प्रशस्त रंगों के स्पंदनों से रुक जाते हैं, निर्वीर्य हो जाते हैं। साथ-साथ कषाय-विलय और मूर्छा-विलय के जो स्पंदन होते हैं, उन्हें शक्ति मिलती है और वे सक्रिय हो जाते हैं।
हम भावों को परितर्वन कर लेश्याओं को शुद्ध कर भाव-संस्थान को गंगाजल जैसा निर्मल बनायें, गंगोत्री जैसा निर्मल बनायें और शरीर, मन तथा अध्यात्म की चिकित्सा करें। हम शरीर के दोष और अपाय, मन के दोष और अपाय तथा अध्यात्म के दोष अर्थात् मूर्छा के दोष और अपाय-इन सब अपायों को समाप्त करें और उपायों का प्रयोग करें।
निष्पत्तियां परिवर्तन का प्रारम्भ
तेजस् लेश्या का बाल-सूर्य जैसा लाल रंग है। लाल रंग निर्माण का रंग है। लाल रंग का तत्त्व है-अग्नि। हमारी सक्रियता, शक्ति, तेजस्विता, दीप्ति, प्रवृत्ति सबका स्रोत है-लाल रंग। लाल रंग हमारा स्वास्थ्य है। डॉक्टर सबसे पहले देखता है कि रक्त में श्वेत कण कितने हैं और लाल कण कितने हैं ? लाल कण कम होते हैं तो वह अस्वास्थ्य का द्योतक है। लाल रंग में यह क्षमता है कि वह बाह्य जगत् से अन्तर्जगत् में ले जा सकता है। जब तक कृष्ण, नील और कापोत लेश्या काम करती है, तब तक व्यक्ति अन्तर्मुखी नहीं हो सकता, आध्यात्मिक नहीं हो सकता, अन्तर्जगत् की यात्रा नहीं कर सकता। वह आंतरिक सुखों का अनुभव नहीं कर सकता। हम प्रेक्षा-ध्यान की प्रक्रिया में आंतरिक सूक्ष्म स्पन्दनों का अनुभव करना सीखाते हैं। चित्त जब सूक्ष्म होता है, तब वह सूक्ष्म कंपनों को पकड़ने में सक्षम हो जाता है। जब तैजस्-शरीर के साथ हमारा संपर्क स्थापित होता है, तब रंग दीखने लग जाते हैं।
जब हम दर्शन केन्द्र पर बाल सूर्य के अरुण रंग का ध्यान करते हैं और जब वह ध्यान सधता है, अरुण रंग प्रगट होता है, दीखने लग जाता है, तब इस लाल रंग के अनुभव से, तेजस् लेश्या के स्पन्दनों की अनुभूति से अन्तर्जगत् की यात्रा प्रारम्भ होती है। आदतों में परिवर्तन आना प्रारम्भ हो जाता है। कृष्ण, नील और कापोत-लेश्या के काले रंगों से होने वाली आदतें तेजस् लेश्या के प्रकाशमय लाल रंग से समाप्त होने लगती हैं। अचानक स्वभाव में परिवर्तन आता है।
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