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लेश्या-ध्यान
१३५ किया, अपनी अन्तश्चेतना को जगाया, साक्षात्कार किया और जाना कि आत्मा है। तब वह साधक की "अपनी" सच्चाई बन जाती है, अनुभव की सच्चाई बन जाती है। ध्यान के द्वारा ही हम अनुभव की सच्चाई तक पहुंच सकते हैं। ध्यान के अतिरिक्त ऐसा कोई माध्यम नहीं है जो हमें शाब्दिक सच्चाई से हटाकर अनुभव की सच्चाई तक पहुंचा दे।
परिवर्तन और रूपान्तरण व्यक्तित्व का रूपान्तरण
अध्यात्म के आचार्यों ने आत्म-शोधन की प्रक्रिया को इतने सुन्दर ढंग से प्ररूपित किया है कि उसे ठीक समझ कर यदि हम उसका प्रयोग करें तो व्यक्तित्व के रूपान्तरण में कोई कठिनाई नहीं होगी।
लेश्या के शोधन के द्वारा ही जीवन में धर्म सिद्ध हो सकता है। जब कृष्ण, नील और कापोत-ये तीन लेश्याएं बदल जाती हैं और तेजस्, पद्म और शुक्ल-ये तीन लेश्याएं अवतरित होती हैं, तब परिवर्तन घटित होता है। लेश्याओं के शोधन के बिना जीवन नहीं बदल सकता।
धार्मिक होने का अर्थ ही है कि परिवर्तन की यात्रा पर चल पड़ना, रूपान्तरण की ओर प्रस्थान कर देना। यहां से तैजस-लेश्या की यात्रा शुरू हो जाती है, अध्यात्म की यात्रा शुरू हो जाती है। जब तैजस-लेश्या की यात्रा प्रारम्भ होती है तब अध्यात्म के स्पंदन जाग जाते हैं। जब अध्यात्म के स्पंदन जागते हैं, तब परिवर्तन अपने आप शुरू हो जाता है।
अध्यात्म का समूचा मार्ग रूपान्तरण की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का एक अभ्यास-क्रम है। जो व्यक्ति इस अभ्यास-क्रम को स्वीकार कर लेता है, वह निश्चित ही अपनी लेश्याओं को बदल देता है। वह कृष्ण, नील और कापोत लेश्याओं का अतिक्रमण कर या उन्हें बदलकर तैजस, पद्म और शुक्ल लेश्याओं के स्पन्दनों के अनुभवों में चला जाता है। वहां जाने पर स्वभाव में अपने आप परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है। यह है हमारे स्वभाव-परिवर्तन की प्रक्रिया और इसका साधन है लेश्या-ध्यान। रासायनिक परिवर्तन
तप की समूची प्रक्रिया, योग की समूची प्रक्रिया और ध्यान की समूची प्रक्रिया आंतरिक रसायन-परिवर्तन की प्रक्रिया है। शक्तिशाली और गरिष्ठ भोजन के द्वारा शरीर में विषैले (Toxic) रसायन पैदा होते हैं,
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