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लेश्या-ध्यान प्रकाश हमारे अन्तःस्रावी ग्रन्थि-तंत्र एवं नाडी-तंत्र को निश्चित रूप से प्रभावित करता है। नाडी-ग्रन्थि-तन्त्र पर रंगों का प्रभाव
अमरीकरन इन्स्टीच्यूट ऑफ बायो-सोसल रिसर्च के निदेशक प्रो. एलेकझांडर सोस की मान्यता है कि रंग का विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा किसी अज्ञात रूप में हमारी पिच्यूटरी और पिनियल ग्रन्थियों एवं मस्तिष्क की गहराई में विद्यमान हायपोथेलेमस को प्रभावित करती है। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे शरीर के ये अवयव अंतःस्रावी ग्रन्थि-तंत्र' का नियमन करते हैं, जो स्वयं शरीर के अनेक मूलभूत क्रियाकलापों और आक्रमण, भय आदि भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रण करता है।
हेरोल्ड बोलाफार्थ नामक प्रकाश-जीव विज्ञान-शास्त्री (फोटोवायोलोजिस्ट) और "जर्मन अकादमी ऑफ कलर साइन्स” के अध्यक्ष ने एक विद्यालय के बच्चों पर कुछ प्रयोग करने के पश्चात् यह रिपोर्ट दी है कि दो अंधे बच्चों के रक्त-चाप, नाड़ी की गति और श्वास की गति पर प्रकाश का वही प्रभाव देखा गया, जो कि अन्य सात सामान्य दृष्टि वाले बच्चों पर सामने आया था। बायो-सोसल रिसर्च की एक पत्रिका में उपर्युक्त प्रयोग की जो रिपोर्ट छपी है, उसमें बताया गया है कि जब विद्यालय के कमरे की दीवारों के रंगों को नारंगी और सफेद से बदलकर रोयल ब्लू और हल्का ब्लू कर दिया गया, सामान्य बत्तियों के स्थान पर इन्द्रधनुषी बत्तियों को लगा दिया, तो बच्चों का प्रकुंचक (ऊपर का) रक्तचाप १२० से घटकर १०० तक आ गया। उनका व्यवहार पहले से अधिक अच्छा और अनुशासनबद्ध हुआ तथा उनकी एकाग्रता बढ़ गई। आगे श्री बोहलाफार्थ कहते हैं-प्रकाश से प्राप्त विद्युत्-चुम्बकीय ऊर्जा की अल्प मात्राएं हमारे एक या एक से अधिक तंत्रिका-संचारी (neuro transmitter) को-जो एक तंत्रिका से दूसरी तंत्रिका तक या तंत्रिका से मांसपेशी तक संदेश पहुंचाने वाले रासायनिक संदेशवाहक हैं-प्रभावित करती हैं। प्रयोगों के द्वारा ऐसे प्रमाण भी उपलब्ध हुए हैं कि जो प्रकाश हमारी आंखों के दृष्टिपटल पर टकराता है, वह हमारी पाइनियल ग्रंथि में से निकलने वाले मेलाटोनिन नामक महत्त्वपूर्ण स्राव के संश्लेषण को १. प्रेक्षाध्यान : साधना-पद्धति में एण्डोक्राइन ग्रन्थियां, चैतन्य केन्द्रों के संवादी स्थान हैं।
प्रत्येक एण्डोक्राइन ग्रन्थि का अपना रंग है। रंग के आधार पर उसे प्रभावित किया जा सकता है।
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