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लेश्या ध्यान
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सभी प्राणियों के स्वास्थ्य और व्यवहार पर प्रकाश और रंगों का गहरा प्रभाव है। वनस्पति जगत् के लिए सूर्य का प्रकाश जीवनदाता है। मनुष्य एवं अन्य प्राणियों की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक दशाओं तथा आचार-व्यवहार पर विभिन्न रंगों का क्या क्या प्रभाव पड़ता है-इस विषय में प्राचीन एवं आधुनिक दोनों विज्ञान में काफी गवेषणा की गई है। उन्नीसवीं शताब्दी के रंग-चिकित्सकों का यह दावा था कि विभिन्न रंगों के कांच या बोतलों के माध्यम से तैयार की गई औषधियों द्वारा वे सामान्य कब्जी से लेकर तंत्रिकाशोथ (नाड़ी तंत्र की कोशिकाओं पर आई हुई सोजिश) (meningitis) जैसी घातक बीमारियों तक को ठीक कर सकते हैं। उस युग में इस प्रकार के दावे चिरकाल तक प्रतिष्ठित नहीं हो सके और अंत में बदनाम भी हुए। किन्तु आधुनिक युग में इन्हें रंग-चिकित्सा या 'प्रकाश-जैविकी' (फोटोबायोलोजी) के नाम से पुनरुज्जीवित किया गया है। अमेरीका की "मासाच्यूसेट्स इन्स्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलोजी" के सुप्रसिद्ध पोषण-वैज्ञानिक डॉ. रिचर्ड जे. बुर्टमैन के अनुसार - " शारीरिक क्रियाकलापों पर सबसे अधिक प्रभाव डालने वाले तत्त्वों के आहार के अतिरिक्त यदि किसी का हाथ है, तो वह है प्रकाश का । "
अनेक प्रयोगों द्वारा यह ज्ञात किया जा चुका है कि विभिन्न रंगों का व्यक्ति के रक्तचाप, नाड़ी और श्वसन की गति एवं मस्तिष्क के क्रियाकलापों पर तथा अन्य जैविकी क्रियाओं पर विभिन्न प्रकार का प्रभाव पड़ता है। इसी के परिणामस्वरूप आज अनेक प्रकार की बीमारियों की चिकित्सा में विभिन्न रंगों का उपयोग किया जाने लगा है।
नीला और पराबैंगनी रंग
प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में बच्चों का निर्धारित समय से पहले प्रसव हो जाता है। ऐसे बालक प्रायः घातक पीलिया की बीमारी के शिकार हो जाते हैं। ऐसे बालकों का उपचार पहले प्रायः बाहर से रक्त चढ़ाकर किया जाता था। अब उनका उपचार रक्त आधार के बदले नीले प्रकाश की किरणों के स्नान से किया जाने लगा है।
रूस को प्रकाश-जैविकी के क्षेत्र में अग्रगण्य माना जाता है। वहां के वैज्ञानिकों के अनुसार कोयला की खानों के मजदूरों को यदि पराबैंगनी किरणों का स्नान कराया जाता है, तो वे "श्याम फुप्फुस " (black lungs) नामक बीमारी से बच सकते हैं। श्री फावेर बिरेन एक रंग-विशेषज्ञ हैं,
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