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प्राथमिक और पूरक रंग
नीला, पीला और लाल-ये तीन प्राथमिक रंग कहलाते हैं। इन रंगों को उचित अनुपात में मिलाने पर दूसरे रंग प्राप्त किए जा सकते हैं, जबकि अन्य रंगों को मिलाने से ये प्राथमिक रंग प्राप्त नहीं हो सकते। जब दो रंगों को मिलाने से तीसरा रंग प्राप्त होता है, तो उन दो रंगों को एक-दूसरे का "पूरक" रंग कहते हैं I
प्रकृति के रहस्य अधिकांशतः प्रकाश की भाषा में अंकित हैं। उनका उद्घाटन प्रकाश की सांकेतिक भाषा को समझने से हो सकता है। अणु-सिद्धांत और प्रकाश के वास्तविक स्वरूप के ज्ञान के आधार पर अब बात सिद्ध हो चुकी है कि प्रत्येक द्रव्य या प्रत्येक प्रकार का अणु अपनी आण्विक संरचना के आधार पर एक विशेष तरंग दैर्ध्य को ही ऊर्जा के रूप में उत्सर्जित या गृहीत करता है। इसी के आधार पर प्रत्येक द्रव्य का वर्णपट्ट में एक निश्चित स्थान होता है, जो दूसरे किसी द्रव्य का नहीं होता। इसका तात्पर्य यह हुआ कि प्रत्येक प्रकार का अणु अपने अस्तित्व और व्यक्तित्व को अपने विशिष्ट हस्ताक्षर द्वारा अभिव्यक्त करने की क्षमता रखता है और यह हस्ताक्षर उसके अपने अनन्य वर्ण के रूप में होता है। दूसरे शब्दों में, यह अभिव्यक्ति उस द्रव्य विशेष या अणुविशेष की "अंगुलियों की छाप" बन जाती है जो केवल उसके अपने व्यक्तित्व (संरचना-विशेष) को ही व्यक्त करती है। इसके आधार पर ज्योतिर्वैज्ञानिक अन्तरिक्ष में सुदूर आकाश-पिण्डों तक विद्यमान द्रव्यों को पहचान सकते हैं। लाखों प्रकाश वर्ष दूर रहे हुए नीहारिकाओं तथा ताराओं का अध्ययन करने में इससे बड़ी सहायता मिलती है। वर्णक्रम विज्ञान (स्पेक्ट्रोस्कोपी) के द्वारा प्राप्त तथ्यों के आधार पर समग्र विश्व के निर्माण एवं संरचना के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों की स्थापना हुई है। सर जोसेफ नोर्मल लोक्यर नामक वैज्ञानिक ने सूर्य- रश्मियों के वर्णक्रम के अध्ययन से ही इस बात की खोज की थी कि सूर्य में 'हीलियम' नामक द्रव्य विद्यमान है।
प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग
रंग और मनोविज्ञान
वैज्ञानिकों के अनुसार भी हमारा सारा जीवन-तंत्र रंगों के आधार पर चलता है। आज के मनोवैज्ञानिकों और वैज्ञानिकों ने यह खोज की है कि व्यक्ति के अन्तर-मन को, अवचेतन मन को और मस्तिष्क को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला है - रंग । रंग हमारे समूचे व्यक्तित्व को प्रभावित
करता है
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