________________
११५
लेश्या-ध्यान रंग की परिभाषा
सूर्य से प्रसारित होने वाले प्रकाश-तरंग जब पदार्थ से होकर गुजरते हैं, तब उस पदार्थ की स्वयं की विशिष्टता के कारण एक विशेष तरंग-दध्य को छोड़कर शेष सभी उस पदार्थ के द्वारा शोषित हो जाते हैं। इस प्रकार जब दूब में से प्रकाश की तरंगें गुजरती हैं, दूब की विशिष्टता के कारण ही हरे को सूचित करने वाली तरंग-दैर्ध्य को छोड़कर शेष तरंग-दैर्ध्य वाली सभी तरंगें दूध के द्वारा शोषित (absorbed) हो जाती हैं। हमारी आंख तक केवल वे ही तरंगें पहुंचती हैं, जिनका तरंग-दैर्ध्य हरे रंग को सूचित करता है और इसीलिए हमें दूबे हरी दिखाई देती हैं।
सुप्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और नोबल-पुरस्कार-विजेता प्रो. सी.बी. रमन ने रंग की प्रक्रिया पर गहन शोध-कार्य किया है। उपर्युक्त कथन की पुष्टि प्रो. रमन के इस कथन से होती है कि "सूर्य के प्रकाश में जो पदार्थ का रंग हमें दिखाई देता है, वह पदार्थ के ऊपर पड़ने वाली सूर्य-रश्मियों में विद्यमान समस्त प्रकाश-तरंगों में से जिस द्रव्य का पदार्थ बना हुआ है, उस द्रव्य द्वारा विसरण (diffusion) और छितराव (scattering) के पश्चात् जो तरंगें आंख तक पहुंचती हैं तथा आंख द्वारा उनका संश्लेषण होता है, उनसे उत्पन्न होता है।"
किसी भी पदार्थ का रंग तीन बातों पर निर्भर होता है-आपतित प्रकाश की प्रकृति, पदार्थ द्वारा शोषित प्रकाश और विभिन्न रंगों की अनवशोषित प्रकाश-किरणें। इन तीनों के कारण से आंख पर उत्पन्न अनुभूति ही पदार्थ का रंग है। पारदर्शक और अपारदर्शक वस्तुएं का
- जब सफेद प्रकाश किसी पारदर्शी वस्तु पर आपतित होता है, तो उसका कुछ भाग वस्तु द्वारा अवशोषित हो जाता है, थोड़ी मात्रा में परिवर्तित होता है, पर अधिकांश भाग संचरित (पार) हो जाता है। अपारदर्शक वस्तु पर आपतित प्रकाश का कुछ हिस्सा परावर्तित हो जाता है, कुछ उसमें प्रवेश करता है, जिसका कुछ भाग वापस लौटता है और शेष भाग अवशोषित हो जाता है। अपारदर्शक वस्तु का रंग आपतित प्रकाश की प्रकृति और अवशोषित प्रकाश पर निर्भर करता है क्योंकि सभी वस्तुएं अपने रंग के प्रकाश को छोड़कर शेष रंगों की प्रकाश-किरणों को अवशोषित कर लेती हैं।
Scanned by CamScanner