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शरीर-प्रेक्षा
करता है, वह अपने दुर्दम द्वेष से उसी क्षण दुःख को प्राप्त करता है। वे रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पर्श और भाव उसका कोई अपराध नहीं करते। तैजस शरीर
तैजस शरीर वह सूक्ष्म शरीर है, जो पूरे स्थूल शरीर में फैला हुआ होता है और पूरे शरीर को ऊर्जा देता है। शरीर-विज्ञान के अनुसार हर कोशिका में ऊर्जा का निर्माण होता है और अध्यात्म के अनुसार चेतना के असंख्य प्रदेशों में प्राण व्याप्त है। कार्मण शरीर
कार्मण शरीर सूक्ष्मतम माना गया है। अध्यात्म के अनुसार ज्ञान, दृष्टि, संवेदनशीलता, आसक्ति, शरीर-सौष्ठव, बाह्य परिवेश, विघ्न-बाधाएं और जीवन की अवधि आदि सभी का निर्धारण कार्मण शरीर में होता है। प्रेक्षा का प्रयोग एक पुरुषार्थ है, जो कर्मों के प्रभाव को नष्ट कर सकता है। कार्मण शरीर का शरीर-विज्ञान में संवादी-तंत्र है अन्तःस्रावी ग्रंथि-तंत्र। इस प्रकार प्रतीत होता है कि ग्रन्थि-तंत्र के स्रावों और कर्मस्रावों में समानता है। हमारी कोशिकाओं में स्थित गुण-सूत्र (Chromosomes) और जिन्स (Genes) ग्रन्थियों को प्रभावित करने वाले हैं। कर्म-शास्त्रीय दृष्टि से नाम-कर्म और गुण-सूत्र व जिन्स में बहुत ही साम्य नजर आता है।
शरीर-प्रेक्षा द्वारा प्रत्येक कोशिका की प्रेक्षा करके हम न सिर्फ अपनी ऊर्जा के व्यय को रोकते हैं, बल्कि कार्मण शरीर को भी प्रभावित करते हैं। पहले हम गहराई तक भीतर चित्त को ले जाकर औदारिक शरीर को देखते हैं। हमें जिन स्पन्दनों का अनुभव होता है, वे होते हैं परिवहन-तन्त्र के और रासायनिक परिवर्तन के जब और गहराई में जाते हैं तो हम कोशिकाओं के भीतर ऊर्जा का अनुभव करते हैं। गुण-सूत्र और जिन्स के कार्यों के प्रभाव हमारे अनुभव में आते हैं।
शरीर-प्रेक्षा में हमारा ज्ञान और दृष्टि का आवरण हटता है। हम अपने आप को और शरीर को नये-नये पहलुओं से जानते और देखते हैं। संवेदनशीलता नई दृष्टि के साथ विकसित होती है।
प्रयोजन आत्म-दर्शन की प्रक्रिया
शरीर हमारी आत्मा है। जब तक उसमें प्राण-शक्ति का संचार है तब १. उत्तराध्ययन, ३२/२४, २५, ३७. ३८, ५०. ५१, ६३. ६४. ७६. ७७. ८६. ६०।
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