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________________ 2/5 प्राप्नोतीत्याशङ्कापनोदार्थम्-'इन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तं देशतः' इत्याह। देशतो विशदं यत्तत्प्रयोजनं ज्ञानं तत्सांव्यवहारिक प्रत्यक्षमित्युच्यते नान्यदित्यनेन तत्स्वरूपम्, इन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तमित्यनेन पुनस्तदुत्पत्तिकारणं प्रकाशयति। 16. तत्रेन्द्रियं द्रव्यभावेन्द्रियभेदावधा। तत्र द्रव्येन्द्रियं गोलकादिपरिणामविशेषपरिणतरूपरसगन्धस्पर्शवत्पुद्गलात्मकम्, पृथिव्यादीनामत्यन्तभिन्नजातीयत्वेन द्रव्यान्तरत्वासिद्धितस्तस्य प्रत्येक तदारब्धत्वासिद्धेः। भावेन्द्रियं पुनः शंकाकार शंका करते हुये कहते हैं कि इस प्रकार का लक्षण तो अनुमान में भी संभावित है अत: वह भी सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा जायेगा? इस शंका का समाधान करने के लिए ही सूत्रकार ने 'इन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तं देशतः' ऐसा कहा है, मतलब-जो ज्ञान इन्द्रियों और मन से होता है, (हेतु से नहीं होता) वह एक देश सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष प्रमाण है। अन्य हेतु आदि से होने वाले अनुमानादि को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष नहीं कहा गया है। इस तरह एक देश विशद होना यह इस सांव्यवहारिकप्रत्यक्ष का स्वरूप कहा गया है तथा 'यह इन्द्रिय एवं मन से होता है'- ऐसा जो कहा है वह उसकी उत्पत्ति का कारण प्रकट करने के लिए कहा है। 16. इंद्रियों के दो भेद हैं-निवृत्ति और उपकरण। पुनः-निवृत्ति के भी बाह्यनिवृत्ति और आभ्यन्तर निवृत्ति ऐसे दो भेद हैं। चक्षु आदि इन्द्रियों के आकार रूप जो आत्मा के कुछ प्रदेशों की रचना बनती है वह आभ्यन्तर निवृत्ति है, और उन्हीं स्थानों पर चक्षु रसना आदि का बाह्याकार पुद्गलों के स्कन्ध की रचना होना बाह्यनिवृत्ति है। इनमें से आभ्यन्तर निवृत्ति आत्मप्रदेश रूप है, अतः वह पौद्गलिक नहीं है। उपकरण के भी दो भेद हैं 1. आभ्यन्तर उपकरण 2. बाह्य उपकरण नेत्र में पुतली आदि की अन्दर की रचना होना आभ्यन्तर उपकरण है और पलकें आदि रूप बाह्य उपकरण हैं, कहने का तात्पर्य प्रमेयकमलमार्तण्डसार:: 57
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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