SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2/3 प्रत्यक्षप्रमाणविमर्शः प्रत्यक्षप्रमाणविमर्शः तत्राद्यप्रकारं विशदमित्यादिना व्याचष्टे विशदं प्रत्यक्षम् ॥3॥ 7. विशदं स्पष्टं यद्विज्ञानं तत्प्रत्यक्षम्। तथा च प्रयोग:-विशदज्ञानात्मक प्रत्यक्षं प्रत्यक्षत्वात्, यत्तु न विशदज्ञानात्मक तन्न प्रत्यक्षम् यथाऽनुमानादि, प्रत्यक्षं च विवादाध्यासितम्, तस्माद्विशदज्ञानात्मकमिति। 8. अनेनाऽकस्माद्भूमदर्शनात् 'वह्निरत्र' इति ज्ञानम्, 'यावान् कश्चिद् भावः कृतको वा स सर्वः क्षणिकः, यावान् कश्चिद्भूमवान्प्रदेश: सोग्निमान्' इत्यादि व्याप्तिज्ञानं चास्पष्टमपि प्रत्यक्षमाचक्षाणः प्रत्याख्यातः; अनुमानस्यापि विशदं प्रत्यक्षम्॥3॥ सूत्रार्थ- विशद(स्पष्ट) ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है। 7. आचार्य प्रभाचन्द्र कहते हैं कि यहाँ विशद-स्पष्ट ज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण कहा गया है, जो ज्ञान स्पष्ट होता है वही प्रत्यक्ष है, अनुमानप्रयोग विशद ज्ञानस्वरूप प्रत्यक्ष होता है, क्योंकि वह प्रत्यक्ष है, जो विशद ज्ञानात्मक नहीं होता वह प्रत्यक्ष भी नहीं होता, जैसे अनुमान आदि विशद नहीं हैं अतः वे प्रत्यक्ष भी नहीं हैं, प्रत्यक्ष यहाँ साध्य है अतः उसमें विशदज्ञानात्मकता सिद्ध की गई है। 8. प्रत्यक्ष प्रमाण का यह लक्षण अन्य बौद्ध आदि के द्वारा माने हुए प्रत्यक्ष का निरसन कर देता है, जैसे बौद्ध कहते हैं कि अचानक धूम के देखने से जो ऐसा ज्ञान होता है कि यहाँ अग्नि है वह प्रत्यक्ष है तथा जितने भी पदार्थ सद्भाव रूप या कृतक रूप होते हैं वे सब क्षणिक हैं अथवा जितने भी धूमयुक्त स्थान होते हैं वे सब अग्नि सहित होते हैं, इत्यादि रूप जो व्याप्तिज्ञान है वह यद्यपि अस्पष्ट है फिर भी बौद्धों ने उसे प्रत्यक्ष माना है, अत: इन सब ज्ञानों में प्रत्यक्षपना नहीं है यह बात प्रत्यक्ष के इस विशदत्व लक्षण से सिद्ध हो जाती है। यदि बौद्ध अस्पष्ट अविशद ज्ञान को भी प्रत्यक्ष प्रमाण स्वीकार करते हैं तो फिर अनुमान ज्ञान में भी प्रत्यक्षता का प्रसङ्ग आने से प्रत्यक्ष 52:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy