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________________ 1/8-9 घटमहमात्मना वेद्मीति ॥8॥ कर्मवत्कर्तृकरणक्रियाप्रतीतेः ॥9॥ 46. न हि कर्मत्वं प्रत्यक्षतां प्रत्यङ्गमात्मनोऽप्रत्यक्षत्वप्रसङ्गात् तद्वत्तस्यापि कर्मत्वेनाप्रतीतेः । तदप्रतीतावपि कर्तृत्वेनास्य प्रतीतेः प्रत्यक्षत्वे ज्ञानस्यापि करणत्वेन प्रतीतेः प्रत्यक्षतास्तु विशेषाभावात् । 11911 घटमहमात्मना वेद्मीति ॥8॥ कर्मवत्कर्तृकरणक्रियाप्रतीतेः ॥9॥ सूत्रार्थ - 'मैं घट को आत्मा (ज्ञान) से जानता हूँ' ||8|| 'कर्म के समान कर्ता, करण और क्रिया की भी प्रतीति होती इस सूत्र में 'अहं' पद कर्ता है, 'घट' कर्म है, 'आत्मना ' पद करण है और ‘वेद्मि' यह क्रिया है। जैसे जानने वाला पुरुष अपने आपके द्वारा घट को जानता है, वैसे ही अपने आपको भी जानता है। 46. आचार्य प्रभाचन्द्र कहते हैं कि मैं घट को अपने द्वारा (ज्ञान के द्वारा) जानता हूँ। जैसे कि घट पदार्थ का प्रत्यक्ष होता है, देखिये जो कर्म रूप होता है वही प्रत्यक्ष होता है ऐसा नियम नहीं है अर्थात् प्रत्यक्षता का कारण कर्मपना हो ऐसी बात नहीं है, यदि ऐसा नियम किया जाय कि जो कर्मरूप है वही प्रत्यक्ष है तो आत्मा के भी अप्रत्यक्ष हो जाने का प्रसङ्ग आयेगा, क्योंकि करणभूतज्ञान जिस प्रकार कर्म रूप नहीं है वैसे ही आत्मा भी कर्म रूप से प्रतीत नहीं होता है। यदि मीमांसक यह कहें कि आत्मा कर्मपने से प्रतीत नहीं होता है किन्तु कर्तृत्व रूप से प्रतीत होता है अतः वह प्रत्यक्ष है तो फिर ज्ञान भी कारणरूप से प्रत्यक्ष हो, कोई विशेषता नहीं है। अर्थात् ज्ञान और आत्मा दोनों ही कर्मरूप से प्रतीत नहीं होते हैं फिर भी यदि आत्मा का प्रत्यक्ष होना स्वीकार करते हो तो ज्ञान को भी प्रत्यक्ष मानना होगा। प्रमेयकमलमार्त्तण्डसार 39
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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