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__19. नाप्यनुमानम्: “ज्ञातसम्बन्धस्यैकदेशदर्शनादसन्निकृष्टेऽर्थे बुद्धिः" इत्येवेलक्षणत्वात्तस्य। सम्बन्धश्च कार्यकारणभवादिनिराकरणेन नियमलक्षणोऽभ्युपगम्यते। तदुक्तम्
कार्यकारणभावादिसम्बन्धानां द्वयी गतिः। नियमानियमाभ्यां स्यादनियमादनङ्गता॥1॥ सर्वेऽप्यनियमा ह्येते नानुमोत्पत्तिकारणम्। नियमात्केवलादेव न किञ्चिन्नानुमीयते॥2॥
20. स च सम्बन्धः किमन्वयनिश्चयद्वारेण प्रतीयते, व्यतिरेकनिश्चयद्वारेण वा? प्रथमपक्षे कि प्रत्यक्षेण, अनुमानेन वा तन्निश्चयः? न
___19. अनुमान प्रमाण के द्वारा भी ज्ञातृव्यापार सिद्ध नहीं होता। क्योंकि अनुमान का लक्षण–'जिसने सम्बन्ध को जाना है ऐसे व्यक्ति को जब उसी विषय के एक देश का दर्शन होकर जो दूरवर्ती पदार्थ का ज्ञान होता है उसे अनुमान कहते हैं'-ऐसा आपके यहाँ शाबरभाष्य में कहा गया है। प्रभाकर के यहाँ अनुमान में कार्यकारण सम्बन्ध और तादात्म्यादि सम्बन्ध माना नहीं गया है। मात्र नियम अर्थात् अविनाभाव सम्बन्ध स्वीकार किया गया है। कहा भी गया है
'कार्य कारण आदि सम्बन्ध नियम और अनियम रूप दो प्रकार के होते हैं। इसमें जो नियम रूप सम्बन्ध है वही अनुमान में कार्यकारी है दूसरा नहीं।' ॥
'अविनाभाव सम्बन्ध से रहित हेतु अनुमान की उत्पत्ति में उपयोगी नहीं है तथा नियम ही एक ऐसा है जिससे ऐसा कोई पदार्थ नहीं जो न जाना जाय।' ॥2॥
इस प्रकार यह बात सिद्ध हुयी कि प्रभाकर के अनुसार अनुमान में नियम सम्बन्ध को ही सही माना है।
20. अब प्रश्न यह है कि 'ज्ञाता के व्यापार के साथ अर्थ प्रकाशन का अविनाभाव है'-इस सम्बन्ध का निर्णय अन्वय निश्चय के
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शाबरभाष्य 1/1/5
प्रमेयकमलमार्तण्डसार:: 23