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________________ 1/1 15. नन्वसौ विशेषो यदि तेषां विषयप्राप्तिरूपः, तदेन्द्रियादिसन्निकर्ष एव नामान्तरेणोक्तः स्यात्। स चानन्तरमेव प्रतिव्यूढः। 16. अथाऽर्थाकारपरिणतिः, नः अस्या बुद्धावेवाभ्युपगमात्। न च श्रोत्रादिस्वभावा तद्धर्मरूपा अर्थान्तरस्वभावा वा तत्परिणतिर्घटते; प्रतिपादितदोषानुषङ्गात्। न च परपक्षे परिणामः परिणामिनो भिन्नोऽभिन्नो वा घटते इति।। ज्ञातृव्यापारसमीक्षा 17. एतेन प्रभाकरोपि 'अर्थतथात्वप्रकाशको ज्ञातव्यापारोऽज्ञानरूपोऽपि 15. इस पर सांख्य अपना पक्ष रखते हुये कहते हैं कि यद्यपि वृत्ति इन्द्रियों से अर्थांतर रूप है फिर भी प्रतिनियत विशेष रूप होने से यह वृत्ति इन्द्रियों की है-ऐसा कहा जाता है। इस स्पष्टीकरण पर पुनः प्रभाचन्द्राचार्य प्रश्न करते हुये कहते हैं कि वह प्रतिनियत विशेष है क्या चीज? वह विषय प्राप्ति रूप है या अर्थाकार परिणति रूप? यदि वह विषय प्राप्ति रूप है अर्थात् इन्द्रिय का विषय के निकट होना-ऐसा है, तो यह तो आपने सन्निकर्ष का ही नाम मात्र बदल दिया लगता है, जिसका हम खण्डन पूर्व में कर चुके हैं। 16. यदि प्रतिनियत विशेष से आपका तात्पर्य अर्थाकार परिणति से है तब भी ठीक नहीं बैठ रहा क्योंकि आपके ही यहाँ सिर्फ बुद्धि में ही अर्थाकार होना स्वीकार किया गया है, अन्यत्र नहीं। वह अर्थाकार परिणति प्रत्येक इन्द्रिय आदि के स्वभाव वाली नहीं है और वह न ही इन्द्रियों की वृत्ति रूप है, न किसी अन्य रूप ही है, क्योंकि वहाँ वे सभी दोष आ जाते हैं जिन्हें पहले कहा जा चुका है। सांख्य दर्शन में परिणामी से परिणाम भिन्न है या अभिन्न-ऐसा कुछ भी सिद्ध नहीं होता ज्ञातृव्यापारसमीक्षा 17. मीमांसा दर्शन के प्रभाकर कहते हैं कि पदार्थों को जैसा का तैसा जानने रूप जो ज्ञाता का व्यापार है भले ही वह अज्ञान रूप हो प्रमेयकमलमार्तण्डसार:: 21
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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