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________________ 1/1 __13. अथ व्यतिरिक्ता; तदाप्यसौ किं तेषां धर्मः अर्थान्तरं वा? प्रथमपक्षे वृत्तेः श्रोत्रादिभिः सह सम्बन्धो वक्तव्यः स हि तादात्म्यम्, समवायादिर्वा स्यात्? यदि तादात्म्यम्; तदा श्रोत्रादिमात्रमेवासाविति पूर्वोक्त एव दोषोऽनुषज्यते। अथ समवायः; तदास्य व्यापिन: सम्भवे व्यापिश्रोत्रादिसद्भावे च। “प्रतिनियतदेशावृत्तिरभिव्यज्येत्" इति प्लवते। 14. अथ संयोगः, तदा द्रव्यान्तरत्वप्रसक्तेन तद्धर्मो वृत्तिर्भवेत्। अर्थान्तरमसौ; तदा नासौ वृत्तिरर्थान्तरत्वात् पदार्थान्तरवत्। अर्थान्तरत्वेपि प्रतिनियतविशेषसद्भावात्तेषामसौ वृत्तिः। 13. यदि इन्द्रियों से उसकी वृत्ति भिन्न है तो क्या वह उसका धर्म है या और कोई चीज है? यदि धर्म है, तो उस धर्म रूप वृत्ति का इन्द्रियों के साथ कौन सा सम्बन्ध है? तादात्म्य सम्बन्ध है या समवाय सम्बन्ध है? यदि तादात्म्य सम्बन्ध मानेंगे तो वृत्ति और इन्द्रियाँ एक ही हो गयीं फिर उनमें वही सुप्तादि का अभाव होना रूप दोष आयेगा, यदि इन्द्रिय और वृत्ति में समवाय सम्बन्ध मानेंगे तो श्रोत्रादिक इन्द्रिय और समवाय इन दोनों के व्यापक होने से दोष बना ही रहेगा क्योंकि “प्रतिनियतदेशावृत्तिरभिव्यज्येत्”-प्रतिनियत देश से प्रकट करें, इत्यादि। यह आपका ही वाक्य है। 14. यदि उन दोनों के बीच संयोग सम्बन्ध स्वीकार करेंगे तब संयोग दो अलग-अलग धर्मों के बीच में होने का नियम होने से वृत्ति में इन्द्रिय धर्मता का अभाव मानना पड़ेगा। क्योंकि संयोग सम्बन्ध इन्द्रिय और वृत्ति ये दो पृथक् पृथक् द्रव्य हैं ऐसा स्वीकार करना पड़ेगा। ऐसा मानने पर 'इन्द्रिय का धर्म वृत्ति है' यह घटित नहीं होगा। और यदि वृत्ति इन्द्रिय से कोई भिन्न ही वस्तु है-ऐसा मानोगे तो 'इन्द्रिय की वृत्ति'-ऐसा नहीं कह पाओगे जैसे कि दूसरे भिन्न पदार्थों को नहीं कह सकते। अर्थात् जिस प्रकार घट-पट आदि इन्द्रिय से भिन्न पदार्थ होने से 'इन्द्रिय का घट या पट' ऐसा कथन नहीं बनता है उसी प्रकार वृत्ति इन्द्रिय से भिन्न सिद्ध हो जाने पर 'इन्द्रिय की वृत्ति' ऐसा कथन नहीं बन पायेगा। 20:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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