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________________ 12. सम्यग्ज्ञानस्य निश्श्रेयसप्राप्तेः सकलपुरुषार्थोपयोगित्वात्, निखिलप्रयासस्य प्रेक्षावतां तदर्थत्वात्, प्रमाणेतरविवेकस्यापि तत्प्रसाध्यत्वाच्च। तदाभासस्य तूक्तप्रकाराऽसम्भवादप्राधान्यम्। 'इति' हेत्वर्थे। पुरुषार्थसिद्ध्यसिद्धिनिबन्धनत्वादिति हेतोः 'तयोः' प्रमाणतदाभासयो 'लक्ष्म' असाधारणस्वरूपं व्यक्तिभेदेन तज्ज्ञप्तिनिमित्तं लक्षणं 'वक्ष्ये' व्युत्पादनार्हत्वात्तल्लक्षणस्य यथावत्तत्स्वरूपं प्रस्पष्टं कथयिष्ये। अनेन ग्रन्थकारस्य तद्व्युत्पादने स्वातन्त्र्यव्यापारोऽवसीयत-निखिललक्ष्यलक्षणभावावबोधाऽन्योपकारनियतचेतोवृत्तित्वात्तस्य। 13. ननु चेदं वक्ष्यमाणं प्रमाणेतरलक्षणं पूर्वशास्त्राप्रसिद्धम्, तद्विपरीतं वा? यदि पूर्वशास्त्राऽप्रसिद्धम्-तर्हि तद्व्युत्पादनप्रयासो नारम्भणीयः स्वरुचिविरचितत्वेन सतामनादरणीयत्वात्, तत्प्रसिद्धं तु नितरामतन्न व्युत्पादनीयंपिष्टपेषणप्रसङ्गादिति। उपयोगी है। तथा बुद्धिमान् इसी सम्यग्ज्ञान के लिए प्रयत्न करते हैं। प्रमाण ज्ञान से ही प्रमाण-अप्रमाण भेदज्ञान होता है। प्रमाणाभास से मोक्ष के साधन का ज्ञान नहीं होता अतः वह गौण है। 'इति' यह अव्यय पद हेतु अर्थ में प्रयुक्त किया है क्योंकि वह पुरुषार्थ की सिद्धि और असिद्धि में कारण है। 'तयोः' अर्थात् प्रमाण और प्रमाणाभास का लक्षण-असाधारण स्वरूप व्यक्ति भेद से जो उनका ज्ञान कराने में समर्थ है- ऐसा लक्षण कहूँगा। लक्षण तो व्युत्पत्ति सिद्धि करने योग्य होता ही है अतः उसका स्पष्ट रूप यथार्थ लक्षण कहूँगा, इस 'वक्ष्ये' पद से ग्रन्थकार आचार्य संपूर्ण लक्ष्य और लक्षणभाव को अच्छी तरह जानने वाले होते हैं, तथा पर का उपकार करने में इनका मन लगा रहता है, ऐसा समझना चाहिए। 13. अब यहाँ शंका करते हैं कि जो प्रमाण और प्रमाणाभास का लक्षण आप आगे कहने वाले हैं वह पूर्व शास्त्रों में प्रसिद्ध है या नहीं? यदि नहीं है तो उसका लक्षण करने का प्रयास करना व्यर्थ है क्योंकि वह तो अपने मन के अनुसार बनाया गया होने से सज्जनों तथा विद्वानों के द्वारा आदरणीय नहीं होगा और यदि पूर्व शास्त्रों में प्रसिद्ध है तब तो कहना ही नहीं क्योंकि वह पिसे हुये आटे को पुनः पीसने के 10:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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