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________________ स्मृतिप्रामाण्यवाद का ज्ञान नहीं होता किन्तु निरवयव एक व्यापक स्फोट नामा अमूर्त वस्तु द्वारा गो आदि पदार्थों का ज्ञान होता है, व्यंजक-ध्वनि आदि से उस स्फोट की अभिव्यक्ति होती है और उसमें अर्थ बोध होता है ऐसा भर्तृहरि आदि वैयाकरणों का पक्ष है उसका इस प्रकरण में खंडन किया है। स्मरण ज्ञान को इस प्रकरण में प्रमाणभूत सिद्ध किया है। - स्वरूप को पुष्ट करना। - अपने विषय का उल्लंघन। - साध्य के साथ जिसका अविनाभाव सम्बन्ध है उसे हेतु कहते हैं। कारण को या निमित्त को भी हेतु कहते हैं। जिसका साध्य के साथ अविनाभावी सम्बन्ध नहीं है वह हेत्वाभास है। उसके असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक और अकिञ्चित्कर- ऐसे चार भेद हैं। स्वरूप परिपोष स्वार्थातिलंघन हेत्वाभास प्रमेयकमलमार्तण्डसार::363
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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