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________________ सपक्ष समर्थ स्वभाव समवशरण ज्ञान कराती हैं- ऐसा वैशेषिक का कहना है। इन्द्रियों द्वारा पदार्थों का जो छूना है वह सन्निकर्ष है और वही प्रमाण है ऐसा वैशेषिक के प्रमाण का लक्षण है। पक्ष के समान साध्य धर्म जिसमें रहे उसको सपक्ष कहते हैं। - जिसमें स्वयं समर्थ स्वभाव हो। अर्हत तीर्थंकर भगवान की धर्मोपदेश की सभा जिसमें असंख्य भव्य प्राणियों को मोक्षमार्ग का उपदेश एवं शरण मिलती है। वैशेषिक छह पदार्थ मानते हैं उन छह पदार्थों में समवाय एक पदार्थ है। द्रव्य का अपने गुणों के साथ जो सम्बन्ध है वह समवाय संबंध है, द्रव्यों को गुणों से पृथक् नहीं होने देना उसका काम है द्रव्यों की उत्पत्ति प्रथम क्षण में निर्गुण हुआ करती है और द्वितीय क्षण में उसमें समवाय नामा पदार्थ गुणों को सम्बन्धित कर देता है ऐसी वैशेषिक की मान्यता समवाय समवाय सम्बन्ध समवायी आत्मा आदि द्रव्य, जिनमें समवाय आकर गुणों को जोड़ देता है वे द्रव्य समवायी कहे जाते हैं। द्रव्यों में जो गुण जोड़े गये हैं वे गुण समवेत कहलाते हैं। समवेत 360:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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