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________________ व्यावृत्तप्रत्यय - यह इससे भिन्न है इत्यादि आकार वाले ज्ञान को व्यावृत्तप्रत्यय कहते हैं। - अनुमान व्याकरण या अन्य किसी विषय में प्रवीण पुरुष को व्युत्पन्नप्रतिपतृ कहते व्युत्पन्नप्रतिपतृ हैं। व्यंग्यव्यञ्जक प्रगट करने योग्य पदार्थ व्यंग्य कहलाते हैं. और प्रगट करने वाला व्यञ्जक कहलाता शब्द नित्यत्ववाद शब्दाद्वैत - शब्द आकाश गुण है एवं वह सर्वथा नित्य एक और व्यापक ऐसा मीमांसक आदि मानते हैं। संपूर्ण पदार्थ तथा उनका ज्ञान शब्दमय है, शब्दब्रह्म से निर्मित है, शब्द को छोड़कर अन्य कुछ भी नहीं है ऐसा भर्तृहरि आदि परवादी का कहना है। ग्रन्थ में जिसका प्रतिपादन किया जायेगा उसको समझना तथा आचरण में लाना शक्य है ऐसा बताना शक्यानुष्ठान कहलाता शक्यानुष्ठान शाबलेय शून्याद्वैत चितकबरी गाय आदि पशु। चेतन-अचेतन कोई भी पदार्थ नहीं है सब शून्यस्वरूप हैं-ऐसा बौद्ध के एक मत माध्यमिक का कहना है, इसी को शून्याद्वैत कहते हैं। - पक्ष और सपक्ष दोनों में हेतु की व्याप्ति सकल व्याप्ति 358:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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