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________________ इस प्रकार साध्य के अभाव में साधन के अभाव का अविनाभाव होना या दिखलाना व्यतिरेक व्याप्ति कहलाती है। व्यधिकरणासिद्ध हेत्वाभास- साध्य और हेतु का अधिकरण भिन्न-भिन्न होना व्यधिकरणासिद्ध हेत्वाभास कहलाता है। व्यंजककारण वस्तु को प्रगट या प्रकाशित करने वाला कारण व्यंजककारण कहलाता है। व्यंजकध्वनि व्यंजकध्वनि नामा कोई एक पदार्थ है वह शब्द को प्रगट करता है ऐसा शब्द नित्यवादी मीमांसक आदि का कहना है। व्यवच्छेद्य-व्यवच्छेदक - पृथक् करने योग्य अथवा जानने योग्य पदार्थ को व्यवच्छेद्य कहते हैं और पृथक् करने वाले अथवा जानने वाले को व्यवच्छेदक कहते हैं। व्यवस्था विशिष्ट स्थिति का जो कारण है उसे व्यवस्था कहते हैं। व्यवसाय ज्ञान में वस्तु का निश्चायकपना होना व्यवसाय कहलाता है। व्याचिख्या - कहने की इच्छा व्याप्य-व्यापक - जो उस विवक्षित वस्तु में है और अन्यत्र भी है वह व्यापक कहलाता है, और जो उसी एक विवक्षित में ही है वह व्याप्य कहा जाता है, जैसे वृक्ष यह व्यापक है और नीम, आम आदि व्याप्य हैं। प्रमेयकमलमार्तण्डसार::357
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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