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________________ विधि-यानी अस्तित्व साधक मानते हैं इनका अभाव प्रमाणपंचकाभाव कहा जाता प्रमाण सिद्ध धर्मी - प्रत्यक्ष प्रमाण से पक्ष के सिद्ध रहने को प्रमाण सिद्ध धर्मी कहते हैं। प्रमाण संप्लव एक ही विषय में अनेक ज्ञानों को जानने के लिये प्रवृत्ति होना प्रमाण संप्लव कहलाता प्रमाता - जानने वाला आत्मा। प्रमिति - प्रतिभास या जानना। प्रमेय - प्रमाण के द्वारा जानने योग्य पदार्थ। प्रभाकर मीमांसक के एक भेद स्वरूप प्रभाकर नामा ग्रन्थकार के अभिप्राय को मानने वाले प्रभाकर कहलाते हैं। प्रवर्त्तमान अस्तित्व रूप से प्रवृत्ति करने वाला प्रमाण। प्रशस्तमति यौग मत का ग्रन्थकार। प्रकृतिकर्तृत्ववाद - सांख्य का कहना है कि प्रकृति नाम का जड़ तत्त्व जगत का कर्त्ता है। प्रसज्य - सर्वथा अभाव या तुच्छाभाव को प्रसज्य अभाव कहते हैं। प्रसज्य प्रतिषेध - सर्वथा निषेध या अभाव को प्रसज्य प्रतिषेध कहते हैं। प्रसंग साधन - अन्य वादी द्वारा इष्ट पक्ष में उन्हीं के लिये अनिष्ट का प्रसंग उपस्थित करना प्रसंग साधन कहलाता है। 352:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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