________________ तादात्म्य सम्बन्ध - द्रव्यों का अपने गुणों के साथ अनादि से जो मिलना है-स्वतः ही उस रूप रहना, एवं पर्याय के साथ मर्यादित काल के लिये अभेद रूप से रहता है- ऐसे अभिन्न सम्बन्ध को तादात्म्य सम्बन्ध कहते हैं। (अर्थात् वस्तु में गुण स्वतः ही पहले से रहते हैं-ऐसा जैन का अखंड सिद्धान्त है। वस्तु प्रथम क्षण में गुण रहित होती है और द्वितीय क्षण में समवाय से उसमें गुण आते हैं ऐसा नैयायिक वैशेषिक मानते हैं, जैन ऐसा नहीं मानते हैं।) तादात्विक - उस काल का, तत्काल का। त्रिगुणात्मक तीन गुण वाला, प्रधान तत्त्व में सत्त्व रज और तम ऐसे तीन गुण होते हैं ऐसा सांख्य मानते हैं। त्रिदश - देव। त्रैरूप्यवाद बौद्ध हेतु के तीन अंग या गुण मानते हैं-पक्षधर्म, सपक्षसत्त्व और विपक्ष व्यावृत्ति, इसी को त्रैरुप्यवाद कहते हैं। दृष्टेष्ट विरुद्ध वाक् - दृष्ट-प्रत्यक्ष और इष्ट अर्थात् परोक्ष इन दोनों प्रमाणों से विरुद्ध वचन को दृष्टेष्ट विरुद्ध वाक् कहते हैं। द्रव्य वाक्य शब्द रूप वचन रचना एवं लिखित रचना को द्रव्य वाक्य कहते हैं। दीर्घशष्कुली भक्षण - बड़ी कचौड़ी का खाना। - 346:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः