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________________ ज्ञातृव्यापार ज्ञाता की क्रिया को ज्ञातृव्यापार कहते तदुत्पत्ति ज्ञानांतरवेद्य ज्ञानवाद - ज्ञान स्वयं को नहीं जानता उसको जानने के लिये अन्य ज्ञान की आवश्यकता रहती है, ऐसी नैयायिक की मान्यता है। ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न होता है-ऐसा बौद्ध मानते हैं, तत्-पदार्थ से उत्पत्ति-ज्ञान की उत्पत्ति होना तदुत्पत्ति कहलाती है। तदाकार ज्ञान का पदार्थ के आकार को धारण करना, यह भी बौद्ध मान्यता है। तर्क प्रमाणवाद जहाँ जहाँ साधन (हेतु) होता है वहाँ वहाँ साध्य अवश्य होता है इत्यादि रूप से साध्य साधन को सर्वोपसंहार से ज्ञात करने वाला ज्ञान तर्क प्रमाण कहलाता है। इसी को तर्क प्रमाणवाद कहते हैं। ज्ञेय-ज्ञायक जानने योग्य पदार्थ ज्ञेय कहलाते हैं और जानने वाला आत्मा ज्ञायक या ज्ञाता कहलाता है। तद्व्यवसाय उसी पदार्थ को जानना जिससे कि ज्ञान उत्पन्न हुआ है और जिसके आकार को धारण किये हुए है, वह तदव्यवसाय कहलाता है, यह सब बौद्ध मान्यता है। तथोपपत्ति साध्य के होने पर साधन का होना। उस तरह से होना या उस प्रकार की बात घटित होना भी तथोपपत्ति कहलाती है। प्रमेयकमलमार्तण्डसार::345
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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