________________ होना व्यतिरेक है। अन्विताभिधानवाद - वाक्य में स्थित पद सर्वथा वाक्यार्थ से अन्वित (सम्बद्ध) ही रहते हैं ऐसा प्रभाकर का (मीमांसक का एक भेद) मत है। अपनीति - हटाना - मोक्ष। अप्रेतप्रतिबन्धकत्व - प्रतिबन्धक (रुकावट) से रहित होना। अपोहवाद गो आदि संपूर्ण शब्द अर्थ के वाचक न होकर केवल अन्य के निषेधक हैं। ऐसी बौद्ध की मान्यता है। अपौरुषेय पुरुष प्रयत्न से रहित को अपौरुषेय कहते अपवर्ग अप्रयोजक हेतु - सपक्ष में व्यापक और पक्ष से व्यावृत्त होने वाला उपाधियुक्त अप्रयोजक हेतु कहलाता है। अप्रहेय जिसका स्फोट नहीं कर सकते। अनुमान में स्थित हेतु बाधा रहित पक्ष वाला या साध्य वाला होना अबाधित विषयत्व है। अभिधीयमान - कहने में आ रहा अर्थ या शब्द अभिधीयमान कहलाता है। अभिहितान्वयवाद - वाक्य में स्थित प्रत्येक पद वाक्य के अर्थ को कहता है- ऐसा भाट्ट मानता है। अभ्युदय - इस लोक सम्बन्धी तथा देवगति सम्बन्धी प्रमेयकमलमार्तण्डसार::339