________________ - सद अनुविद्ध सम्बद्ध या व्याप्त को अनुविद्ध कहते हैं। अनुपलम्भ - अप्राप्त होना या उपलब्ध नहीं होने को अनुपलंभ कहते हैं। अनुमेय - अनुमान के द्वारा जानने योग्य पदार्थ को अनुमेय कहते हैं। अनुसन्धान - जोड़ को अनुसंधान कहते हैं। अनुवृत्त प्रत्यय सदृश वस्तुओं में 'गौ-गौ' इत्यादि प्रकार की समानता का अवबोध होना। अनेकान्त जिसमें अनेक धर्म (स्वभाव या गुण) पाये जाते हैं उसको अनेकांत कहते हैं। एक वस्तु में वस्तुपने को निपजाने वाली परस्पर विरुद्ध दो शक्तियों का एक साथ प्रकाशित होना 'अनेकान्त' है। जैन प्रत्येक पदार्थ को अनेक धर्म रूप मानते हैं अतः इस मत को अनेकान्त मत भी कहते हैं। अनैकान्तिक - इस नाम का एक हेतु का दोष भी माना गया है, अथवा जो कथन व्यभिचरित होता है उसे भी अनैकान्तिक कहते हैं। अन्तर्व्याप्ति - हेतु का केवल पक्ष में ही व्याप्त रहना अन्तर्व्याप्ति कहलाती है। अन्धसर्पबिलप्रवेश न्याय-अन्धा सर्प चींटी आदि के कारण बिल से निकलकर इधर उधर घूमता है और पुनः उसी बिल में प्रविष्ट होता है, वैसे ही जैनेतर प्रवादी अनेकान्तमय सिद्धान्त को प्रथम तो मानते नहीं, किन्तु घूम-फिर प्रमेयकमलमार्तण्डसार::337