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________________ अननुविद्ध अनवस्था अनाधेय वाला ज्ञान। - सम्बद्ध या व्याप्त नहीं रहना। - जो मूल तत्त्व का ही नाश करती है वह अनवस्था कहलाती है, किन्तु जहाँ वस्तु के अनन्तपने के कारण या बुद्धि की असमर्थता के कारण जानना न हो सके वहाँ अनवस्था नहीं मानी जाती है। मतलब जहाँ पर सिद्ध करने योग्य वस्तु या धर्म को सिद्ध नहीं कर सके और आगे आगे अपेक्षा तथा प्रश्न या आकांक्षा बढ़ती ही जाय, कहीं पर रुकना नहीं हो, वह अनवस्था नामक दोष कहा जाता है। - जिसका आरोपण नहीं किया जा सकता उसे अनाधेय कहते हैं। - यह गो है यह गो है। ऐसे सदशाकार ज्ञान को अनुगत प्रत्यय कहते हैं। साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं, अर्थात् किसी एक चिह्न या कार्य को देखकर उससे संबंधित पदार्थ का अवबोध कराने वाला ज्ञान अनुमान कहलाता है। जैसे दूर से पर्वत पर धुआं निकलता देखा, "इस पर्वत पर अग्नि है, क्योंकि धूम दिखायी दे रहा है" इत्यादि स्वरूप वाला जो ज्ञान होता है वह अनुमान या अनुमान प्रमाण कहलाता अनुगत प्रत्यय अनुमान 336:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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