________________ आकार रहता है। ऐसा विज्ञानाद्वैतवादी कहते हैं।] अगौण - मुख्य या प्रधान को अगौण कहते हैं। अत्यन्ताभाव - एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य रूप कभी भी नहीं होना, सर्वथा पृथक् रहना अत्यन्ताभाव कहलाता है। अर्थकारणवाद ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न होता है- ऐसा नैयायिक तथा बौद्ध मानते हैं। इसको अर्थकारणवाद कहते हैं। अर्थक्रिया - वस्तु का कार्य में आ सकना, जैसे घट की अर्थक्रिया जलधारण है। अर्थजिज्ञासा - पदार्थों को जानने की इच्छा होना। अर्थप्राकट्य - पदार्थ का प्रगट होना-जानना। अर्थसंवित् - पदार्थ के ज्ञान को अर्थसंवित् कहते हैं। अदुष्टकारणारब्धत्व - निर्दोष कारणों से उत्पन्न होने वाला ज्ञान। अद्वैत - दो या दो प्रकार के पदार्थों का नहीं होना। अदृश्यानुपलम्भ नेत्र के अगोचर पदार्थ का नहीं होना। अदृष्ट भाग्य, कर्म, पुण्य इत्यादि अदृष्ट शब्द के अनेक अर्थ हैं। वैशेषिक इस अदृष्ट को आत्मा का गुण मानते हैं। अनतिशयव्यावृत्ति - अतिशय रहितपने का हट जाना अर्थात् अतिशय आना। अनधिगतार्थग्राही - कभी भी नहीं जाने हये पदार्थ को जानने प्रमेयकमलमार्तण्डसार::335