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________________ परिशिष्ट-1 शब्दकोश न्यायशास्त्र के कुछ अपने विशिष्ट पारिभाषिक शब्द हैं, जिनका अर्थबोध अत्यन्त आवश्यक है। यहाँ प्रमेयकमलमार्तण्ड में प्रयुक्त जैन न्याय के कुछ पारिभाषिक शब्दों तथा उनके अर्थों को पूर्व प्रकाशित ग्रन्थों के आधार से संकलित करने का प्रयास किया गया है। न्यायशास्त्रों के अध्येताओं तथा जिज्ञासुओं के लाभार्थ यह संक्षिप्त संकलन प्रस्तुत है। अंडज - अंडे से उत्पन्न होने वाले को अंडज कहते हैं। अकिंचिज्ञ किंचित न जानकर अशेष को जानने वाले सर्वज्ञ को अकिंचिज्ञ कहते हैं। अकृतसमयध्वनि - जिसमें संकेत नहीं किया है ऐसी ध्वनि को अकृतसमयध्वनि कहते हैं। अकृष्टप्रभव - बिना बोये उगे धान्य तृण आदि। अक्रमानेकांत गुणों को अक्रम अनेकांत कहते हैं। द्रव्य गुणों की अक्रम अर्थात् युगपत्वृत्ति होती अतीन्द्रिय चक्षु आदि पाँचों इन्द्रियों द्वारा जो ग्रहण करने में नहीं आये वे पदार्थ अतीन्द्रिय कहलाते हैं। - अपनी ख्याति [विपर्यय ज्ञान में अपना ही आत्मख्याति 334:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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