________________ 7/1 अथ सप्तमपरिच्छेदः नयविमर्शः प्राचां वाचाममृततटिनीपूरकर्पूरकल्पान्, बन्धान(न्म )न्दा नवकुकवयो नूतनीकुर्वते ये। तेऽयस्काराः सुभटमुकुटोत्पाटिपाण्डित्यभाजम् , भित्त्वा खङ्ग विदधति नवं पश्य कुण्ठं कुठारम्॥ ननूक्तं प्रमाणेतरयोर्लक्षणमक्षूणं नयेतरयोस्तु लक्षणं नोक्तम्, तच्चावश्यं वक्तव्यम्, तदवचने विनेयानां नाऽविकला व्युत्पत्तिः स्यात् इत्याशङ्कमानं प्रत्याहसम्भवदन्यद्विचारणीयम्॥ सप्तम परिच्छेद नय विवेचन यहाँ पर कोई विनीत शिष्य प्रश्न करता है कि आचार्य मणिक्यनन्दी ने प्रमाण और प्रमाणभासों को निर्दोष लक्षण प्रतिपादित कर दिया किन्तु नय और नयभासों का लक्षण अभी तक नहीं कहा उसको अवश्य कहना चाहिए, क्योंकि उसके न कहने पर शिष्यों को पूर्ण ज्ञान नहीं होगा? इस प्रकार शंका करने वाले शिष्य के प्रति आचार्य कहते सम्भवदन्यद् विचारणीयम्॥1॥ सूत्रार्थ- अन्य जो नयादि है उसका भी विचार कर लेना चाहिए। सम्भवद् पद का अर्थ है विद्यमान पूर्व में कहे हुए प्रमाण और प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 303