________________ 7/1 सम्भवद्विद्यमानं कश्चितात्प्रमाणतदाभासलक्षणादन्यत् नयनयाभासयोलक्षणं विचारणीयं नयनिष्ठैदिग्मात्रप्रदर्शनपरत्वादस्य प्रयासस्येति। तल्लक्षणं च सामान्यतो विशेषतश्च सम्भवतीति तथैव तव्युत्पाद्यते। 1. तत्राऽनिराकृतप्रतिपक्षो वस्त्वंशग्राही ज्ञातुरभिप्रायो नयः। निराकृतप्रतिपक्षस्तु नयाभासः। इत्यनयोः सामान्यलक्षणम्। स च द्वेधा द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकविकल्पात्। द्रव्यमेवार्थो विषयो यस्यास्ति स द्रव्यार्थिकः। पर्याय एवार्थो यस्यास्त्यसौ पर्यायार्थिकः। इति नयविशेषलक्षणम्। तत्राद्यो नैगमसङ्गहव्यवहारविकल्पात् त्रिविधः। द्वितीयस्तु ऋजुसूत्रशब्दसमभिरूद्वैवंप्रमाणाभासों के जो लक्षण हैं उनसे अन्य जो नय और नयभासों के लक्षण हैं उनका विचार नयों के ज्ञाता पुरुषों को करना चाहिये, क्योंकि इस परीक्षामुख ग्रन्थ में दिग्मात्र अतिसंक्षेप में कथन है। अब प्रभाचन्द्र आचार्य नयों का विवेचन करते हैं- नय का लक्षण सामान्य और विशेष रूप में हुआ करता है। अतः उसी रूप में प्रतिपादन किया जाता है। नय का सामान्य लक्षण 1. प्रतिपक्ष का निराकरण नहीं करने वाला एवं वस्तु के अंश का ग्रहण वाला ऐसा जो ज्ञाता पुरुष का अभिप्राय है वह नय कहलाता नयाभास का लक्षण जो प्रतिपक्ष का निराकरण करता है वह नयाभास है। इस प्रकार नय और नयाभास का यह सामान्य लक्षण है। नय मूल में दो भेद वाला है द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिक नय। द्रव्य ही जिसका विषय है वह द्रव्यार्थिक नय है और पर्याय ही जिसका विषय है वह पर्यायार्थिकनय है। यह नय का विशेष लक्षण हुआ। द्रव्यार्थिकनय के नैगम, संग्रह, व्यवहार ऐसे तीन भेद हैं। पर्यायार्थिकनय के चार भेद हैं- ऋजुसूत्र, शब्द समभिरूढ और एवंभूत। 304:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः