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6/42 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
265 52. इन्द्रियसुखे हि साधनममूर्त्तत्वमस्ति, साध्यं त्वपौरुषेयत्वं नास्ति पौरुषेयत्वात्तस्य। परमाणुषु तु साध्यमपौरुषेयत्वमस्ति, साधनं त्वमूर्तत्वं नास्ति मूर्तत्वात्तेषाम्। घटे तूभयमपि पौरुषेयत्वान्मूर्त्तत्वाच्चास्येति। न केवलमेत एवान्वये दृष्टान्ताभासाः किन्तु
विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं तदमूर्त्तम् ॥42॥
53. विपरीतोऽन्वयो व्याप्तिप्रदर्शनं यस्मिन्निति। यथा यदपौरुषेयं तदमूर्तमिति। 'यदमूर्तं तदपौरुषेयम्' इति हि साध्येन व्याप्ते साधने प्रदर्शनीये
अपौरुषेयः शब्दोऽमूर्त्तत्वादिन्द्रियसुख-परमाणु-घटवत् 141॥
सूत्रार्थ- शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे इंद्रिय सुख अमूर्त होने से अपौरुषेय है, अथवा परमाणु अमूर्त होने से अपौरुषेय है, इस प्रकार किसी ने अनुमान का प्रयोग किया इसमें शब्द को अपौरुषेय सिद्ध करने के लिये अमूर्त्तत्व हेतु दिया है और दृष्टान्त तीन दिये हैं, उनमें प्रथम दृष्टान्त इन्द्रिय सुख का है।
52. इन्द्रिय सुख में अमूर्त्तत्व हेतु [साधन] तो है किन्तु साध्य जो अपौरुषेय है वह नहीं, क्योंकि इंद्रिय सुख पुरुषकृत ही है अत: यह दृष्टान्त साध्य विकल ठहरता है। दूसरा दृष्टान्त परमाणु का है, इसमें साध्य अपौरुषेत्व तो है किन्तु साधन-अमूर्त्तत्व नहीं है अतः यह दृष्टान्त साधन विकल कहलाया। तीसरा दृष्टान्त घट का है, इसमें साध्य साधन अपौरुषेय और अमूर्त्तत्व दोनों ही नहीं है, घट तो पौरुषेय और मूर्त है अतः घट दृष्टान्त उभय विकल है। अन्य अन्वय दृष्टान्ताभास को बतलाते हुए अगला सूत्र कहते हैं
विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं तदमूर्त्तम् ॥42॥
सूत्रार्थ- जिस दृष्टान्त में विपरीत अन्वय दिखाया जाता है वह भी दृष्टान्तभास कहलाता है, जैसे कहना कि जो अपौरुषेय होता है वह अमूर्त होता है।
53. विपरीत रूप से अन्वय व्याप्ति है जिसमें उसे विपरीतान्वय
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