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264 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
6/40-41 एतदित्याहव्युत्पन्नप्रयोगस्य पक्षदोषेणैव दृष्टत्वात्।
51. अथेदानीं दृष्टान्ताभासप्रतिपादनार्थे दृष्टान्तेत्याधुपक्रमते। दृष्टान्तो ह्यन्वयव्यतिरेकभेदाद्विधेत्युक्तम्। तद्विपरीतस्तदाभासोपि तद्भेदाद्विधैव द्रष्टव्यः। तत्र
दृष्टान्ताभासा अन्वये असिद्धसाध्यसाधनोभयाः ॥4॥ अपौरुषेयः शब्दोऽमूर्तत्वादिन्द्रियसुख-परमाण-घटवदिति ॥41॥ समझाया है कि इस तरह के हेतु का प्रयोग नहीं करना इस तरह का पक्ष नहीं बनाना, किन्तु जो व्युत्पन्नमति बन चुके हैं और वाद में उपस्थित हुए हैं उनके लिये यह हेत्वाभास का लक्षण नहीं कहा। इसका भी कारण यह है कि व्युत्पन्न पुरुष यदि ऐसा अनुमान प्रयोग करेंगे तो उन्हें वही रोका जायेगा और कहा जायेगा कि आपका यह पक्ष ठीक नहीं है, इस पक्ष के दोष से अर्थात् पक्षाभास के प्रयोग से ही हेतु दूषित हुआ इत्यादि, अतः कोई वाद कुशल पुरुष भी यदि किसी आकुलता आदि कारणवश इस तरह का सदोष अनुमान प्रयोग कर बैठे तो उसे पक्ष के दोष से ही दूषित ठहराया जाता है। इस प्रकार यहाँ तक हेत्वाभास का वर्णन किया। दृष्टान्ताभास
51. अब इस समय दृष्टान्ताभास का प्रतिपादन करते हैं, दृष्टान्त के अन्वय दृष्टान्त और व्यतिरेक दृष्टान्त इस प्रकार दो भेद पहले बताये थे, अतः दृष्टान्ताभास भी दो प्रकार का है उसमें पहले अन्वय दृष्टान्तभास को कहते हैं
दृष्टान्ताभासा अन्वये असिद्धसाध्यसाधनोभयाः ॥40॥
सूत्रार्थ- अन्वय- जहाँ जहाँ साधन [धूम] होता है वहाँ वहाँ साध्य [अग्नि] होता है, इस प्रकार की व्याप्ति दिखलाकर दृष्टान्त दिया जाता है, इस दृष्टांत में यदि साध्य न हो या साधन न हो अथवा उभयदोनों नहीं हो, वे सबके सब अन्वय दृष्टांताभास है, इसका उदाहरण देते