SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 236 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 6/20 च वस्तुस्वभावात्प्रसिद्धम्। यथा गोपिण्डोत्पन्नत्वाविशेषेपि वस्तुस्वभावतः किञ्चिद्दुग्धादि शुद्धं न गोमांसम्। यथा वा मणित्वाविशेषेपि कश्चिद्विषापहारादिप्रयोजनविधायी महामूल्योऽन्यस्तु तद्विपरीतो वस्तुस्वभाव इति। स्ववचनबाधितो यथामाता मे वन्ध्या पुरुषसंयोगेप्यगर्भत्वात्प्रसिद्धवन्ध्यावत् ॥20॥ अथेदानी पक्षाभासानन्तरं हेत्वाभासेत्यादिना हेत्वाभासानाहऔर मांस समान होते हुए भी दूध शुद्ध और मांस शुद्ध नहीं है, अथवा रत्न की अपेक्षा समानता होते हुए भी कोई रत्न विष बाधा को दूर करना इत्यादि कार्य में उपयोगी होने से महामूल्य होता है और कोई रत्न ऐसा इतना उपयोगी नहीं होता, इसी प्रकार का उनमें भिन्न-भिन्न स्वभाव है इसी तरह प्राणी के अंग होते हुए भी मृत मनुष्य की खोपड़ी अपवित्र है- छूने मात्र से सचेल स्नान करना होता है और शंख, सीप आदि के छूने से स्नान नहीं करना पड़ता अतः दोनों को समान बतलाना लोक बाधित है। स्ववचन बाधित पक्षाभास का उदाहरणमाता मे वन्ध्या पुरुषसंयोगेप्यगर्भत्वात् प्रसिद्धवन्ध्यावत्।।20॥ सूत्रार्थ- मेरी माता वन्ध्या है, क्योंकि पुरुष का संयोग होने पर भी गर्भधारण नहीं करती, जैसे प्रसिद्ध वन्ध्या स्त्री गर्भधारण नहीं करती। ऐसा किसी ने पक्ष कहा यह उसी के वचन से बाधित है मेरी माता और फिर वन्ध्या, यह होना अशक्य है यदि माता वन्ध्या होती तो आप कहाँ से होते? इसी तरह प्रत्यक्ष बाधित आदि पक्ष को स्थापित करने से वह अनुमान गलत हो जाता है। अतः अनुमान का प्रयोग करते समय इष्ट, अबाधित और असिद्ध इन विशेषणों से युक्त ऐसे पक्ष का ही प्रयोग करना चाहिये अन्यथा पक्षाभास होने से अनुमान भी असत् ठहरता है। इस प्रकार नौ सूत्रों द्वारा पक्षाभास का वर्णन करके अब आगे अठारह
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy