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________________ 6/18-19 प्रमेयकमलमार्त्तण्डसार: 235 आगमबाधितो यथा प्रेत्याऽसुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वादधर्मवदिति ॥18॥ 9. आगमे हि धर्मस्याभ्युदयनि:श्रेयसहेतुत्वं तद्विपरीतत्वं चाधर्मस्य प्रतिपाद्यते प्रामाण्यं चास्य प्रागेव प्रतिपादितम् । लोकबाधितो यथा शुचि नरशिरःकपालं प्राण्यङ्गत्वाच्छशुक्तिवदिति ॥19॥ 10. लोके हि प्राण्यङ्गत्वाविशेषेपि किञ्चिदपवित्रं किञ्चित्पवित्रं आगम बाधित पक्षाभास का उदाहरण प्रेत्याऽसुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्त्वावधर्मवत् इति ॥18॥ सूत्रार्थ - परलोक में धर्म दुःख को देने वाला है, क्योंकि वह पुरुष के आश्रित है, जैसे अधर्म पुरुष के आश्रित होने से दुःख को देने वाला होता है, इस तरह कहना आगम बाधित है। 9. आगम में तो धर्म को स्वर्ग और मोक्ष का कारण बताया है इससे उलटे जो अधर्म है उसे दुःखकारी नीच गति का कारण बताया है, अतः कोई धर्म को दुख का कारण कहे तो वह आगम बाधित पक्ष है। आगम प्रमाण किस प्रकार प्रामाणिक होता है इसका कथन पहले कर दिया है। लोक बाधित पक्षाभास का उदाहरण शुचि नरशिरःकपालं प्राण्यंगत्वाच्छङ्खशुक्तिवत् इति ॥19॥ सूत्रार्थ - मृत मनुष्य का कपाल पवित्र है, क्योंकि वह प्राणी का अंग अवयव है, जैसे शंख, सीप आदि प्राणी के अंग होकर पवित्र माने गये हैं, इस तरह अनुमान प्रयुक्त करना लोक से बाधित है। 10. लोक में तो प्राणी का अवयव होते हुए भी किसी अंग को - अवयव को पवित्र और किसी को अपवित्र बताया है, क्योंकि ऐसा ही वस्तु का स्वभाव है। जैसे कि गाय से उत्पन्न होने की अपेक्षा दूध
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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