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6/21-23 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
237 हेत्वाभासा असिद्धविरुद्धानैकान्तिकाऽकिञ्चित्कराः ॥21॥
11. साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेरित्युक्तं प्राक्। तद्विपरीतास्तु हेत्वाभासः। के ते? असिद्धविरुद्धानैकान्तिकाऽकिञ्चित्कराः।
तत्रासिद्धस्य स्वरूपं निरूपयतिअसत्सत्तानिश्चयोऽसिद्धः इति ॥22॥
12. सत्ता च निश्चयश्च [सत्तानिश्चयौ] असन्तौ सत्तानिश्चयौ यस्य स तथोक्तः। तत्र
अविद्यमानसत्ताकः परिणामी शब्दश्चाक्षुषत्वादिति ॥23॥
सूत्रों द्वारा हेत्वाभासों का वर्णन करते हैंहेत्वाभास
हेत्वाभासा असिद्धविरुद्धानैकान्तिकाऽकिञ्चित्कराः॥21॥
सूत्रार्थ- हेत्वाभास के चार भेद है असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक और अकिञ्चित्कर।
11. साध्य के साथ जिसका अविनाभावी सम्बन्ध हो वह हेतु कहलाता है, ऐसा हेतु का लक्षण जिसमें न पाया जाय वह हेत्वाभास है उसके ये असिद्धादि चार भेद हैं।
उनमें से असिद्ध हेत्वाभास का निरूपण करते हैंअसत्सत्तानिश्चयोऽसिद्धः ॥22॥
सूत्रार्थ- जो हेतु साध्य में मौजूद नहीं हो वह स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास है तथा जिसका साध्य में रहना निश्चित न हो वह सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास है, यानी पुरुष को जिस हेतु का साध्य के साथ होने वाला अविनाभाव मालूम न हो उसके प्रति हेतु का प्रयोग करना सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास है।
12. “सत्ता च निश्चयश्च सत्तानिश्चयौ, असन्तौ सत्तानिश्चयौ यस्य असौ असत् सत्तानिश्चयः" इस प्रकार "असत् सत्तानिश्चयः" इस पद का विग्रह करके असिद्ध हेत्वाभास के दो भेद समझ लेने चाहिये।
अविद्यमानसत्ताकः परिणामी शब्दश्चाक्षुषत्वात् ॥23॥