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________________ प्रमेयकमलमार्त्तण्डसारः अर्थान्तरगतो विसदृशपरिणामो व्यतिरेकः गोमहिषादिवत् 111011 28. एकस्मादर्थात्सजातीयो विजातीयो वार्थोऽर्थान्तरम्, तद्गतो विसदृशपरिणामो व्यतिरेको गोमहिषादिवत् । यथा गोषु खण्डमुण्डादिलक्षणो विसदृशपरिणामः, महिषेषु विशालविसङ्कटत्वलक्षणः, गोमहिषेषु चान्योन्यमसाधारणस्वरूपलक्षण इति । 208 4/9 29. तावेवंप्रकारौ सामान्यविशेषावात्मा यस्यार्थस्याऽसौ तथोक्तः । स प्रमाणस्य विषयः न तु केवलं सामान्यं विशेषो वा, तस्य द्वितीयपरिच्छेदे अर्थांतरगतो विसदृशपरिणामोव्यतिरेको गोमहिषादिवत्॥10॥ सूत्रार्थ - विभिन्न पदार्थों में होने वाले विसदृश परिणाम को व्यतिरेक विशेष कहते हैं, जैसे गाय, भैंस आदि में होने वाली विसदृशता व्यतिरेक विशेष है। 28. एक कोई गाय आदि पदार्थ है उसे पदार्थ से न्यारा सजातीय गाय आदि पदार्थ हो चाहे विजातीय भैंस आदि पदार्थ से उन पदार्थों को अर्थान्तर कहते हैं, उनमें होने वाली विसदृशता या विलक्षणता ही व्यतिरेक विशेष कही जाती है, जैसे कि गाय भैंसादि में हुआ करती है अर्थात् उनके गो व्यक्तियों में यह खण्डी गाय या बैल है, यह मुण्ड है (जिसका पैर आदि खण्डित हो वह गो खण्ड कहलाती है तथा जिसका सींग टूटा हो वह मुण्ड कहलाती है) इत्यादि विसदृशता का परिणाम दिखायी देता है और भैंसों में यह बड़ी विशाल है, यह बहुत बड़े सींग वाली है इत्यादि विसदृशता पायी जाती है, तथा गाय और भैंस आदि पशुओं में परस्पर में जो असाधारण स्वरूप है वही व्यतिरेक विशेष कहलाता है। 29. इस प्रकार पूर्वोक्त सामान्य के दो भेद और यह विशेष के दो भेद ये सब पदार्थों में पाये जाते हैं। अत: जैन दर्शन की यह विशेषता है कि वह पदार्थ को न केवल सामान्य और न केवल विशेष अपितु
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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