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प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
4/9 भवेत्, ज्ञानं वा? न तावदुत्तरः पक्षः; 'अहं ज्ञातवानहमेव च साम्प्रतं जानामि' इत्येकप्रमातृपरामर्शन ह्यहबुद्धरुपजायमानाया ज्ञानक्षणो विषयत्वेन कल्प्यमानोतीतो वा कल्प्येत, वर्तमानो वा, उभौ वा, सन्तानो वा प्रकारान्तरासम्भवात्?
24. तत्राद्यविकल्पे 'ज्ञातवान्' इत्ययमेवाकारावसायो युज्यते पूर्व तेन ज्ञातत्वात्, 'सम्प्रति जानामि' इत्येतत्तु न युक्तम्, न ह्यसावतीतो ज्ञानक्षणो वर्तमानकाले वेत्ति पूर्वमेवास्य निरुद्धत्वात्।
25. द्वितीयपक्षे तु 'सम्प्रति जानामि' इत्येतद्युक्तं तस्येदानीं वेदकत्वात्, 'ज्ञातवान्' इत्याकारणग्रहणं तु न युक्तं प्रागस्यासम्भवात्।
26. अत एव न तृतीयोपि पक्षो युक्तः; न खलु वर्तमानातीताबुभौ
प्रमाता कौन है? आत्मा है कि ज्ञान है? ज्ञान तो हो नहीं सकता, क्योंकि "मैंने जाना था, मैं ही जान रहा हूँ" इत्यादि रूप से एक प्रमाता का परामर्श जिसमें है ऐसे प्रत्यभिज्ञान द्वारा अहं (मैं) इस प्रकार की बुद्धि उत्पन्न होती है। वह यदि ज्ञान क्षण विषयक है तो कौनसा ज्ञान क्षण है? अतीत ज्ञान क्षण है, या वर्तमान है? अथवा दोनों है अथवा संतान है इनको छोड़कर अन्य कुछ तो हो नहीं सकता।
24. अहंबुद्धि अतीत ज्ञानक्षण को विषय करती है- ऐसा प्रथम विकल्प माने तो "जाना था" -इतना आकार ही निश्चित होना शक्य है, क्योंकि उसने पहले जाना है “अभी जान रहा हूँ"- इस आकार को जानना उसके लिए शक्य नहीं है, क्योंकि यह तो अतीत ज्ञान क्षण है, वह पहले ही नष्ट हो जाने से वर्तमान काल में नहीं जान रहा है।
25. द्वितीय विकल्प- वर्तमान ज्ञान क्षण उस जोड़रूप प्रतिभास को जानता है ऐसा मानना भी शक्य नहीं, वर्तमान ज्ञान क्षण केवल "अभी जान रहा हूँ" इतने को ही जानता है, "जाना था"- इस आकार को ग्रहण कर नहीं सकता, क्योंकि वह पहले नहीं था।
___26. तीसरा विकल्प है कि- अतीत और वर्तमान दोनों ज्ञानक्षण उस जोड़रूप प्रतीति को विषय करते हैं- ऐसा भी नहीं बन