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4/7-9 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
201 अन्वय्यात्मसिद्धिः
यथा च द्वेधा सामान्यं तथाविशेषश्च ॥7॥ चकारोऽपिशब्दार्थे। कथं तद्वैविध्यमित्याहपर्यायव्यतिरेकभेदात् ॥४॥ तत्र पर्यायस्वरूपं निरूपयतिएकस्मिन्द्रव्ये क्रमभाविनः परिणामाः पर्यायाः आत्मनि हर्षविषादादिवत् ॥9॥
स्मरण, प्रत्यभिज्ञान ये दोनों प्रामाणिक ज्ञान हैं, इस बात को तो पूर्व में ही सिद्ध कर दिया है। अन्वयी-आत्मसिद्धि
सामान्य के बाद अब यहाँ विशेष का भेद सहित विवेचन प्रस्तुत
विशेषश्च ॥7॥
सूत्रार्थ-जिस प्रकार सामान्य के दो भेद होते हैं वैसे ही विशेष के भी दो भेद हैं।
यहाँ सूत्र में आया चकार शब्द 'भी' अर्थ का वाचक है। उसी दो भेदों के नाम बताते हैं
पर्यायव्यतिरेकभेदात् ॥8॥
सूत्रार्थ-पर्याय-विशेष और व्यतिरेक-विशेष इस तरह विशेष के दो भेद हैं।
इनमें से पर्यायविशेष का स्वरूप बतलाते हैंएकस्मिन् द्रव्ये क्रमभाविनः परिणामाः पर्यायाः आत्मनि हर्षविषादादिवत्॥॥