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प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
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कथमिति चेत् तिर्यगूर्खताभेदात्॥4॥ तत्र तिर्यक्सामान्यस्वरूपं व्यक्तिनिष्ठतया सोदाहरणं प्रदर्शयतिसदृशपरिणामस्तिर्यक् खण्डमुण्डादिषु गोत्ववत्॥5॥
तिर्यगूातोभेदात् ॥4॥
सूत्रार्थ- सामान्य के दो भेद हैं। तिर्यक् सामान्य और ऊर्ध्वता सामान्य।
हम जानते हैं कि अनेक वस्तुओं में एक सामान पाया जाने वाला धर्म तिर्यक् सामान्य कहलाता है, जैसे अनेक मनुष्यों में मनुष्यत्व समान रूप से विद्यमान रहता है, इसी तरह पटों में पटत्व, गायों में गोत्व, जीवों में जीवत्व इत्यादि समान या सदृश धर्म दिखाई देते हैं इसी को तिर्यक् सामान्य कहते हैं। इस सामान्य धर्म या स्वभाव के कारण ही हमें वस्तुओं में सादृश्य का प्रतिभास होता है। एक ही पदार्थ के उत्तरोतर जो परिणमन होते रहते हैं, उनमें उस पदार्थ का व्यापक रूप से जो रहना है वह उर्ध्वता सामान्य है, जैसे दही, छाछ, मक्खन, गोरस आदि परिणमन या पर्यायों में दूध का व्यापक रूप से रहना उर्ध्वता सामान्य है।
तिर्यक् सामान्य और उर्ध्वता सामान्य में यह अन्तर है कि तिर्यक् सामान्य तो अनेक पदार्थ या व्यक्तियों में पाया जाने वाला समान धर्म है और उर्ध्वता सामान्य क्रम से उत्तरोतर होने वाले पर्यायों में पदार्थ या द्रव्य का रहना है। अपने क्रमिक पर्यायों में एक अन्वयी द्रव्य जैसे दही, छाछ, मक्खन आदि रूप क्रमिक पर्यायों में दुग्ध गोरस का अस्तित्त्व उर्ध्वता सामान्य कहलाता है।
अब सूत्रकार स्वयं व्यक्तियों में निष्ठ रहने वाले इस तिर्यक सामान्य का स्वरूप उदाहरण सहित प्रस्तुत करते हैं
सदृशपरिणामस्तिर्यक् खण्डमुण्डादिषु गोत्ववत् ॥5॥