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प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
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तस्य प्रतिपादितप्रकारप्रमाणस्यार्थो विषयः। किविशिष्ट:? सामान्यविशेषात्मा। कुत एतत्?
पूर्वोत्तराकारपरिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणामेनार्थक्रियोपपत्तेश्च॥2॥
2. अनुवृत्तव्यावृत्तप्रत्ययगोचरत्वात्, यो हि यदाकारोल्लेखिप्रत्ययगोचरः स तदात्मको दृष्टः यथा नीलाकारोल्लेखिप्रत्ययगोचरो
सूत्रार्थ-सामान्य-विशेषात्मक पदार्थ प्रमाण का विषय है अर्थात् सामान्य और विशेष धर्मों से युक्त ऐसा जो पदार्थ है वही प्रमाण का विषय है, प्रमाण के द्वारा जानने योग्य पदार्थ है।
पदार्थ न केवल सामान्य रूप है न केवल विशेष रूप, बल्कि वह उभय रूप है। यह जैनदर्शन की स्पष्ट मान्यता है। वेदान्त एवं सांख्य दर्शन पदार्थ को सामान्य रूप मानते हैं। बौद्ध पदार्थ को विशेष रूप मानते हैं। न्याय-वैशेषिक दर्शन सामान्य को एक स्वतन्त्र पदार्थ मानते हैं तथा विशेष को भी एक स्वतन्त्र पदार्थ मानते हैं। इस प्रकार प्रमाण के द्वारा ग्राह्य पदार्थ के विषय में जो मतभेद हैं उसके निराकरण के लिए पदार्थ को 'सामान्यविशेषात्मा' कहा गया है। अब कहते हैं पूर्वोक्त कहे हुये प्रमाण का सामान्य विशेषात्मक पदार्थ ही विषय है यह बात किस प्रमाण से सिद्ध है? ऐसी आशंका को दूर करते हुए अगला सूत्र कहते हैं
पूर्वोत्तराकारपरिहारावाप्ति स्थितिलक्षणपरिणामेनार्थक्रियोपपत्तेश्च॥2॥
सूत्रार्थ- पदार्थों में अनुवृत्त व्यावृत्त प्रत्यय होते हैं एवं पूर्व आकार का त्याग और उत्तर आकार की प्राप्ति एवं अन्वयी द्रव्य रूप से ध्रुवत्व देखा जाता है इस तरह की परिणाम स्वरूप अर्थक्रिया देखी जाती है।
इस प्रकार उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप से होने वाली परिणाम स्वरूप अर्थ क्रिया का सद्भाव, पदार्थों को सामान्य विशेषात्मक सिद्ध